लुटा हुआ | जयन्ती दलाल
लुटा हुआ | जयन्ती दलाल

लुटा हुआ | जयन्ती दलाल – Luta Hua

लुटा हुआ | जयन्ती दलाल

सरदार सुच्चासिंह को अपनी मनोव्यथा का कारण समझ में नहीं आता था।

उसे अपने पर ही गुस्सा आता था। क्यों उसने अपने वतन का त्याग किया और बम्बई चला आया? बम्बई में न कोई रिश्तेदार था न किसी से जान-पहचान, फिर भी वह वहाँ से भागकर क्यों आया? उसको मालूम था कि वतन में खून की नदियाँ बहने वाली हैं। मां बहन पर पाशविक अत्याचार होनेवाले हैं, और धर्मदेव की आग में विश्वास, मानवता, ईमान सब गलकर भस्मीभूत होने वाले हैं, सो मां-बाप और पत्नी को वहाँ अकेले छोड़कर वह क्यों भाग आया? विधर्मी होने के कारण कई निर्दोष व्यक्तियों की हत्या तो उसकी नंजरों के सामने हुई थी, चारों ओर नालियों में खून तेज गति से बहता था, तो भी वह अपने स्वजनों को छोड़कर क्यों आया! वह अपने मन को समझाने की कोशिश करता रहा कि मां-बाप और पत्नी के लिए बम्बई में कुछ व्यवस्था करने के लिए वह बम्बई आया था, पर मन को इस विचार से सन्तोष नहीं था। उसका भीतर का मन तो उससे कहता था कि वह माता-पिता और पत्नी को उन नृशंस हत्यारों के सहारे छोड़कर वहाँ से भागा है। पर उसका मन एक और दलील देता रहा कि ‘तू तो कायर था और भागकर आया, पर तेरे माता-पिता और अनन्य सुन्दरी पत्नी ने क्यों तुझे अनुमति दी?’

मां और बाप ने तो सोचा होगा कि उनका कुछ भी हो, पर उनके लाल की जिन्दगी बच जाए। उसको भेजकर उन्होंने जान-बूझकर मृत्यु का शिकार बनना चाहा। माता-पिता की त्याग और बलिदान की भावना से उसका कण्ठ भर आया था। उसके विचार ने एक दूसरा मोड़ लिया। उनका बलिदान बेवकूफी थी। वे अपनी जायदाद बचाने के लिए वहाँ रहे, लेकिन जायदाद तो लूट ली गयी। उनका मकान तो जलकर भस्म हो गया। गहने-जवाहरात और अपना जीवन, सब तो गंवा दिया। त्याग और बलिदान तो तब माना जाता है जब वे भी उसके साथ बम्बई चले आते गहने-पैसे लेकर। उनका त्याग और बलिदान तो बिलकुल पागलपन था पागलपन।

मां-बाप तो ठीक, पर समझदार और सुन्दर इन्दर ने उसको बम्बई जाने के लिए क्यों मजबूर किया? उसको चाहिए था कि वह अपनी कसम दिलाकर मुझे साथ रहने पर मजबूर करती या मेरे साथ बम्बई आने की हठ करती। बूढ़े मां-बाप सही ढंग से सोच नहीं सकते थे, पर उसका दिमाग तो काम का था? उसने क्यों उस प्रकार व्यवहार किया! उसने जान-बूझकर तो मुझे वतन का त्याग करने के लिए मजबूर नहीं किया होगा।

सरदार जी को अपने विवाह के समय की घटना याद आ गयी। अभी तो एक साल भी पूरा नहीं हुआ। इन्दर सचमुच बहुत खूबसूरत थी। उसकी खूबसूरती का सरदार जी को गर्व था। इन्दर उसकी पत्नी है, इसलिए उसके आनन्द की कोई सीमा नहीं थी।

लेकिन इन्दर! वह उससे प्यार करती थी? सुच्चासिंह के मन में सन्देह उत्पन्न हुआ। इन्दर के चेहरे पर प्रेम के भाव उसने कभी नहीं देखे थे। वह तो केवल संगमरमर की प्रतिमा-सी थी। तो क्या उसने उसको वहाँ से हटाने के लिए तो बम्बई नहीं भेजा? अगर वैसा न होता तो वह उसको जाने के लिए मजबूर क्यों करती! सुच्चासिंह के मुंह से निकला”शैतान की बच्ची। काली नागिन! उसका ही षडयन्त्र होगा मुझे यहाँ भेजकर मेरे मां-बाप की हत्या करवाने का।”

सुच्चासिंह की आँखें आँसुओं से भर गयीं। वह कितना बुजदिल था! कितना कमअक्ल!

2

वे आये कटरे के मोड़ पर। गोलियाँ बरसती हैं, भयानक पत्थरबांजी होती है। आग हजारों दिशाओं से भड़क उठी है। बचने का कोई मार्ग नहीं था। अच्छा था कि लड़का दूर-दूर चला गया था। वह बच गया।

आत्महत्या ! ना ना, अगर मरना है तो शूरवीर की तरह मारकर क्यों न मरें। गुरुजी का आदेश धर्म को डुबाकर नहीं मरना है। सत् श्री अकाल।

3

गये। सब चले बस। कोई आग में जलकर मर गये, कोई लड़ते-लड़ते मरे, किसी ने आत्महत्या की, ना, कटरा रामसिंह की सब महिलाओं ने राजपूत स्त्रियों की भाँति जौहर किया था। बेइंज्ंजती और तिरस्कार से भरी हुई जिन्दगी से इंज्जत की गौरवपूर्ण मौत ही अच्छी थी।

रूप कितना विनाशकारी बन गया था। अच्छा हुआ कि रूपवती स्त्रियों ने आत्महत्या कर ली।

और उस रूप को सुरक्षित रखना ही किसके लिए! लेकिन उन सब बातों का स्मरण क्यों करें? गोलियों की वर्षा! ये तो नंजदीक आ गये! दरवाजे टूटे, इन्दर ने किरपाण उठायी, ये और ये सारे पागलपन का कारण जो रूप था उसको कुरूप करने के लिए हाथ उठाया तो…

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4

सुच्चासिंह को बम्बई में ठीक ही सूचना मिली। उसका मकान मां-बाप के साथ जलकर खाक हो गया था। सूचना देनेवाले न यह नहीं बताया था कि वे जिन्दा जला दिये गये थे या मरे हुए। सामान, घर की सारी चीजें सब लूट ली गयी थीं। पवित्र चींजों की बेइंज्ंजती भी की गयी थी।

5

कितनी भारी वेदना का बोझ सिर पर है? किससे कहे। सबके सिर पर अपनी-अपनी व्यथा का बोझ है। और वहाँ से अब जिसको पाकिस्तान नाम दे दिया गया हैउसकी करुण कहानी सुनाने के लिए असंख्य लोग शरणार्थी बनकर आ गये हैं। किसकी कहानी सुने? उन कहानियों को सुनने में अब किसको दिलचस्पी है? हमदर्दी! वैसी कोई चींज है ही नहीं ! वे लोग क्यों भूल जाते हैं कि भारत को स्वराज्य हमारे बलिदान से मिला है। आजादी की आग में धुएं के रूप में हमारे मकान जलाए गये। आजादी-यज्ञ में आहुति के रूप में हमारा सर्वस्व खाक हो गया। हमारे भाई-बहन, मां-बाप सबने बलिदान दिया, और और तुम्हारा बाल तनिक भी नहीं हिलता! तुम्हारे, बड़े-बड़े महल बिजली की वातानुकूलित मशीन, तुम्हारी मोटर-गाड़ियाँ तुम्हारी महफिल…और मोहताज बने हम…और तुम लोग…लेकिन इसका कोई अर्थ नहीं। जिन्होंने अपने मां-बाप, भाई-बहन, अपने मकान और अपनी पत्नी को भी गँवाया है, और जिनका सर्वस्व लुट गया है उनको आप लोग क्या देते हैं? फुटपाथ, रहने के लिए कोई धर्मशाला, और विशेष कृपा की तो दो फुलके! बड़ी-बड़ी मोटरों में बैठकर बड़ी तोपवाले लोग आते हैं हमारी धर्मशाला में, हमारी ओर इस प्रकार देखते हैं जैसे चिड़ियाघर के पशु-पक्षी हों और मुट्ठी भर चने दान में दे जाते हैं और दो क्षण दिल बहलाकर चले जाते हैं। हां, सच बात है, दिल बहलाकर! यहाँ सुन्दर लड़कियों को मोटरों में घुमाने वालों की कमी नहीं। मोटर में घूमना।…

इन्दर का क्या होता होगा? मां-बाप के साथ उसकी मृत्यु भी क्यों न हुई? क्यों वह जीवन का मोह छोड़ न सकी। अपने सौन्दर्य के अभिमान ने ही उसको आत्महत्या नहीं करने दी होगी!

वह भी क्या मोटर में घूमती होगी?

सुच्चासिंह के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इन्दर के लिए वैसा खयाल उसको क्यों आया? अकालतख्त की साक्षी में तो दोनों का विवाह हुआ था। उसमें इतना विष? ना। ना। ना।

वह बिचारी क्या करे? पाँच नदियों का पानी पिया, गुरु की प्रतापी बानी सुनी, शूरवीरों के खून से देह बनी, फिर भी औरत! वह कितनी टक्कर झेल सकती थी। उसकी क्षमता कितनी? क्या करे बेचारी?

मेरी क्या कोई जिम्मेदारी नहीं थी? मैंने क्या किया? पति होकर पत्नी को ढूंढ़ने का प्रयत्न भी नहीं किया! केवल नुक्ताचीनी ही करता रहा! उसने सोचा।

पति और पत्नी! क्या अब इन्दर मेरी पत्नी बनने योग्य रही होगी? मोटर में घूमना! और वे तो पशु थे। उनके बीच इन्दर का क्या हुआ होगा? मेरे प्रति निष्ठावान रही होगी? उसको कई जानवरों ने भ्रष्ट किया होगा…अरे रे। विश्वास से उसको हृदय में जलन होने लगी।

दीवार से सिर पटकने की आवश्यकता होती है। सिर झुकाए हुए जीना पड़ेगा। वे मोटरवाले आते हैं। कोई कहता है सुच्चासिंह की पत्नी को गुंडे ले गये। कहाँ गया मेरा शौर्य, कहाँ गया मेरा पौरुष? उनकी हमदर्दी में सच्चाई होती है। वे कहते हैं ‘बिचारे सरदार जी की पत्नी को ले गये।’ मैं कैसा पति हूं जो पत्नी की रक्षा भी न कर पाया?

विशाल राजमार्ग पर घूमते हुए लोग मेरी ओर एकटक देखते रहते हैं? क्या उनको भी पता चल गया कि मैं पत्नी को गुण्डों के हाथों से छुड़वा कर नहीं ले आया? क्या किस्मत ने ही मेरे मुंह पर काले अक्षरों में मेरी बुजदिली के अक्षर लिख दिये हैं? देखिए उनकी नंजरों में भी मेरे प्रति तिरस्कार दिखाई देता है। अवश्य उनको पता चल गया होगा। अवश्य। अगर वैसा न होता तो कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की ओर इस प्रकार देखता है?

इन्दर! जब से तूने मेरे घर में पा/व रखा है, तब से एक के बाद एक मुसीबत उत्पन्न होती जा रही है।

लेकिन उसमें उस बिचारी का क्या दोष? वह जहाँ होगी इस खयाल से जीवित होगी कि एक दिन उसका पति उसको छुड़ाकर ले जाएगा। बिचारी हर क्षण मेरा इन्तजार करती होगी। अब मेरे सिवा उसका है भी कौन?

धर्मशाला में एक महिला आयी है। इसका सब कुछ लूट लिया गया है। वह सारा दिन अपने मकान की, घर के सामान की, बातें करती रहती हैं लेकिन लाखों आदमियों का सब कुछ लूटा गया है, वह एक व्यक्ति अपने दुर्भाग्य के लिए क्यों रोये! मानवता ही लुप्त हो गयी है।

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इन्दर को ढूँढ़कर वापिस लाना ही चाहिए।

6

दिल्ली, अमृतसर!

मेरे जैसे कितने आदमी यहाँ बेबस घूमते-फिरते हैं। गुम हुए रिश्तेदारों को वापिस लाने का कार्य सरकार ने शुरू कर दिया है। लेकिन कोई किसी की पूरी बात सुनता ही नहीं। सबको इस दुख से लाभ उठाकर पैसे बनाने हैं। प्रसिद्ध वृद्ध सरमायेदार की पत्नी ढूँढ़कर उन्होंने वापिस ला दिया और इसके लिए दस हंजार रुपये लिये। मैं तो मुफिलस हूं। मेरे लिए कौन इन्दर को ढूँढ़ेगा? पैसे के बिना इन्दर कैस मिलेगी?

सुच्चासिंह ने सरकार की कचहरी में इन्दर की तलाश के लिए दरखास्त दे दी। उस जैसे बहुत-से लोग कचहरी में अपने स्वजनों की तलाश में आये थे। कोई अपनी बेटी की तलाश में था, कोई अपनी पत्नी की। कई मासूम बच्चे मां को ढूँढ़ने निकलेथे।

दिन पर दिन बीत जाते हैं। कई लोग तो ‘पता लगने पर हमें सूचना देना’ कहकर चले जाते हैं। वह स्वयं कहाँ जाए? धर्मशाला में? ऐसी धर्मशाला अन्य स्थान पर कहाँ मिलने वाली थी! वैसी करुण परिस्थिति का कोई असर अंफसर पर नहीं हुआ था। वे खाली आश्वासन भी नहीं देते थे। यदि उनकी पत्नी को गुंडे उठाकर ले गये होते तो उनको अपहृत स्त्री के पति की व्यथा का पता चलता।

सुच्चासिंह ने देखा कि दो आदमी उसकी ओर आ रहे हैं। उन्होंने आकर उसे अभिवादन किया और बोले”हम लोग आपको मिलने ही आये हैं। आपको पता नहीं होगा, लेकिन हम लोग आपके गाँव के ही वाशिन्दे थे।” उसके बाद उन्होंने बताया कि सुच्चासिंह का घर किस प्रकार जला दिया गया और इन्दर को गुंडे किस प्रकार उठाकर ले गये।

सुच्चासिंह अधीर हो उठा। उसने पूछा, ”तब आप लोगों को तो पता होगा कि इन्दर कहाँ है?”

”यह कहने के लिए ही तो हम आपके पास आये हैं।” और उन्होंने गाँव का नाम बताए बिना तथा किसी अन्य नामोल्लेख के कहा, ”यदि एक हजार रुपया आप दे सकें तो इन्दर वापिस लायी जा सकती है। आप तो हमारे गाँव के हैं, इसलिए यह समाचार लेकर हम आये हैं, यदि जल्दी ही रुपये मिल जाएं तो आपका काम हो सकेगा, यदि देर हुई तो वापिस लाने की कोई सम्भावना नहीं।”

हंजार रुपये कहाँ से लाए! हजार बार चिल्लाने की भी शक्ति नहीं बची थी तो हंजार रुपये कहाँ से लाए!

लेकिन यदि हजार रुपये में इन्दर वापिस लायी जा सकती तो सौदा हो सकता है। वहाँ जो लोग इकट्ठे हुए थे, उनमें से वैसे लोग भी थे जिन्होंने अपनी बहू-बेटी फिर से पाने के लिए पाँच-पाँच, दस-दस हजार रुपए दिये थे। और इन्दर तो बहुत सुन्दर थी। उसके लिए हजार रुपये तो बहुत कम हैं।

”देखिए सरदार जी, इसमें कुछ सोचने जैसा है ही नहीं। कितनी मुसीबत झेलकर और कितने कष्ट उठाकर हम यह समाचार लेकर आये हैं और आपस पैसों की गिनती कर रहे हैं!”

ये भी मुझे नंफरत की नंजर से देख रहे हैं। ये सोचते होंगे, कैसा है यह पति जो पत्नी को वापिस लाने की बात में भी पैसे को विशेष महत्त्व देता है।

”लेकिन यह है कहाँ? यदि आप लोगों को मालूम हो तो हम इस दफ्तर के बड़े अफसर को इस बात की खबर दे सकते हैं, जो उसे वापिस लाने का सारा इन्तजाम करेगा।”

उन लोगों की आँखें उसकी बात सुनकर कैसी लाल हो गयी! सुच्चासिंहडरगया।

”आपके लिए सरदारिन को वापिस लाना असम्भव है। यह बात क्या सरकारी अंफसर को कहने जैसी है? यदि सरकार को ये बातें करनी होतीं तो हम आपके पास क्यों आते? हम स्वयं ही बड़े अंफसर को जाकर सूचना देते। अगर सरकार कुछ कर सकती तो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न ही क्यों होती? कुछ अंक्ल से काम करना चाहिए, सरदार जी!”

सरकार का नाम लेते ही ये लोग क्यों इस प्रकार टेढ़ी-मेढ़ी बातें करते हैं? क्या कुछ रहस्य होगा इसके पीछे? क्या सरकार को सूचना दिएये बिना ही यह मामला निपटाना होगा? कुछ समझ में नहीं आता। सुच्चासिंह सोचने लगा और वे लोग जाने लगे। इन्दर कहाँ है, कैसी हालत में है, कुछ मालूम नहीं हुआ। वह दौड़कर उन लोगों के पीछे गया। वह जानना चाहता था कि इन्दर कैसी है। उसने जब यह बात पूछी तब वे हँस पड़े। हँसने का मतलब है कि इन्दर जीवित है। तो क्या उसका दामन अछूत ही रहा होगा? रहा ही होगा, क्योंकि वह वैसी नेक औरत थी कि अगर किसी भ्रष्ट की होती तो मर जाती।

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7

वे बदमाश उधार लाए हुए आठ सौ रुपये लेकर रफू-चक्कर हो गये। इन्दर तो वापिस न मिली और लोग मंजांक करते हैं कि पत्नी भी गवांयी और रुपये भी। इन्दर भी लूट ली गयी और ऊपर से पैसे भी लूट लिए गये। लुटे हुए आदमी के प्रति किसी को हमदर्दी नहीं है, हां नंफरत प्रचुर मात्रा में है।

अपहृत स्त्रियों की तलाश के लिए और उन्हें वापिस लाने के लिए जो दफ्तर था वहाँ भीड़ लगी हुई थी और उसमें सुच्चासिंह भी था। सरकार ने बहुत-सी स्त्रियों को वापिस लाने का प्रबन्ध किया हैसैनिक उन्हें अमृतसर ला रहे हैं। उसके जैसे कितने लोग यह समाचार सुनकर दफ्तर में इकट्ठे हुए हैं। सब उद्विग्न दृष्टि से इन्तंजार कर रहे हैं।

मोटरें आयीं। बहादुर सैनिकों के बीच अपने स्वजनों को ग्लानि भरी दृष्टि से ढूँढ़ती हुई वे सब स्त्रियाँ। आँखों से आँसुओं की धारा बहती है। भीड़ मोटर को घेर लेती है। एक आवांज आयी बेटी! और उसके बाद किसी की आवांज कोई नहीं सुन पाताइतनी आवांजें एक साथ गूँज उठती हैं। सैनिक सबको धक्का लगाकर दूर धकेलते हैं। स्त्रियों में से किसी के गले से मधुर आवांज निकलती है’मेरे लाल!’

‘इन्दर!’

सुच्चासिंह चौंक उठा। इन्दर होगी? यह? कान से लेकर ओंठ तक लम्बा घाव तो उसके मुंह पर कभी था ही नहीं। लेकिन आँखें तो उसका परिचय ठीक देती हैं। गाल का गङ्ढा तो वैसा ही है। सारी बातें भूलकर उसने पुकारा, ”इन्दर!” और आनन्द और आश्चर्य से भरी हुई आँखें आवांज की ओर जाती हैं। वही तो है। सरकारी कानून भी कैसे हैं! पति-पत्नी इतने लम्बे समय के बाद मिलते हैं, फिर भी सारे कांगंजात पर दस्तंखत करके आधे घंटे के बाद ही वह इन्दर को आत्मीयता से मिल पाते हैं।

8

इन्दर आ गयी। लेकिन उसके मुंह में जैसे जीभ नहीं हैऐसा व्यवहार करती है। कुछ बोलती नहीं है। चुपचाप घर में काम करती रहती है। घाव के बारे में, जो सितम उस पर ढहा उसके बारे में वह कुछ नहीं कहती। सुच्चासिंह पहले भी इन्दर को समझ नहीं सका था, आज भी वह उसे रहस्यमयी लगती है। उस पर क्या-क्या सितम गुंजरे होंगे! यह घाव! क्या इन्दर इन्दर ही रही होगी?

उसका नया जीवन ही शुरू हुआ था! बहुत बार उससे पूछा गया तब उस घाव के बारे में पता चला। कहती है कि उसने आत्महत्या करने के लिए किरपान उठायी तब किसी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ा और खींचातानी में किरपान से कान से होंठों तक घाव हो गया। उसके शरीर में खून बह रहा था तभी कोई उसे उठाकर ले गया।

सुच्चासिंह ने बार-बार पूछा, मिन्नत की, धमकी भी दी, एक बार तमाचा भी लगा दिया, पर घाव के अतिरिक्त दूसरी बातों के लिए उसने एक शब्द भी नहीं कहा। उसकी आँखों में भय, विषाद और बेबसी की छाया दिखाई देती है।

वह क्यों नहीं बोलती? पत्नी पति से अपने दु:ख की बातें नहीं कहेगी तो किससे कहेगी? उसका इस दुनिया में और है भी कौन?

सुच्चासिंह को अपनी आँखों पर विश्वास न रहा। इन्दर की छाती पर यह क्या है? गोदना गुदवाया है’पाकिस्तान जिन्दाबाद!’ इन्दर यही छिपाती थी?

सुच्चासिंह के रोम-रोम में आग थी लेकिन इन्दर कुछ बोलती नहीं थी। उस पर कपड़ा ढँकने का भी प्रयत्न उसने नहीं किया। वह वैसी ही प्रतिमा-सी रहीनिश्चेष्ट। लेकिन उसकी आँखों में कुछ स्थिर तेज दिखाई देता है। एक क्षण में पहले की व्यथा, बेबसी लुप्त हो गयी है और अचंचल दीप्ति उस पर दिखाई दे रही है।

पहले भी कुछ समझ में नहीं आता था। आज भी कुछ समझ में नहीं आता है। क्या यह देखने के लिए वह इन्दर को वापिस ले आया?

लेकिन यह शैतान की बच्ची कुछ बोलती क्यों नहीं? क्या मुझे विरक्त करने की उसकी इच्छा है क्या?

न बोल सकता हूं न सहन कर पाता हूं।

इन्दर किसकी रही? अरे। किसकी हो गयी?

पुन: आँखें वहाँ जाकर स्थिर हो गयीं’पाकिस्तान जिन्दाबाद।’

जैसे इतना पर्याप्त न हो, इन्दर ने धीमी, स्पष्ट आवांज में कहा”देख लिया?”

सुच्चासिंह क्या जवाब दे? क्या बोले?

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