लोहे का बैल
लोहे का बैल

उनके पास बैलों की तीन जोड़ी
हलवाहे जुआठे और कुदालें थीं

जब वे खेत की तरफ जाते
उनके गले में बज उठती थी
घंटियाँ
लोग तन्मय होकर सुनते थे
हवा में बजता था संगीत

एक दो मरकहे बैल थे उनके पास
आते जाते लोगों को हुरपेट देते थे
और पगहा तुड़ा कर भागते थे

See also  मेरी माँ के लिए | एडगर ऐलन पो

उनको लेकर गाँव में होती थी
हँसी-दिल्लगी

कुछ दिन बाद उनके घर जाना हुआ
नहीं दिखाई दिए बैल

मैंने उनसे पूछा – कहाँ गए बैल ?
उन्होंने उदास होकर कहा
– बैल बाजार में बिक गए
उनकी जगह आया है यह
लोहे का बैल
मैंने बैलों के बारे में सोचा
वे रहते थे तो कितना रहता था
मन-मनसायन
वे नहीं है तो दरवाजा लगता है
कितना सूना
जैसे परिवार के कुछ लोग
बाहर चले गए हों

See also  चंदन गंध | रमानाथ अवस्थी

इस बैल से क्या
बतकही करूँ
कुछ बोलता-चालता नही

बैल बोलते नहीं थे
कम से कम हिलाते थे सिर
हमारे भीतर एक साथ कई
घंटियाँ बज जाती थीं

इसी तरह जीवन से तिरोहित हो
जाती हैं मूल्यवान चीजें
उन चीजों के साथ थोड़ा
हम भी गायब हो जाते हैं

Leave a comment

Leave a Reply