लौटता हूँ उसी ताले की तरफ
जिसके पीछे
एक मद्धिम अँधेरा
मेरे उदास इंतजार में बैठा है
परकटी रोशनी के पिंजरे में
जहाँ फड़फड़ाहट
एक संभावना है अभी
चीज-भरी इस जगह से
लौटता हूँ
उसके खालीपन में
एक वयस्क स्थिरता
थकी हुई जहाँ
अस्थिर होना चाहती है
मकसद नहीं है कुछ भी
बस लौटना है सो लौटता हूँ
चिंतन के काठ हिस्से में
पक्ष एक और भी है जहाँ
सुने जाने की आस में
लौटता हूँ
लौटने में
इस खाली घर में
उतारकर सब कुछ अपना
यहीं रख-छोड़ कर
लौटता हूँ अपने बीज में
उगने के अनुभव को ‘होता हुआ’
देखने
लौटता हूँ
इस हुए काल के भविष्य में