लड़की | जय चक्रवर्ती
लड़की | जय चक्रवर्ती

लड़की | जय चक्रवर्ती

लड़की | जय चक्रवर्ती

घर से कॉलिज बस में
करती
रोज सफर लड़की।

पंख हौसलों में
आँखों में
बीज उम्मीदों के
कदम-कदम पर
नसीहतें
कोड़े ताकीदों के

सबको लेकर रखती
सब पर
रोज नजर लड़की।

व्यंग्य, फब्तियाँ,
छेड़छाड़
जहरीली फुफकारें
भूखी-प्यासी
हत्यारी नजरों की
तलवारें।

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एक साथ लाखों
विषधर
ढोती तन पर लड़की।

रुकें न उसके
कदम
उसे मंजिल तक जाना है
अपने होने का
जग को
अहसास कराना है

इसीलिए
सब सहकर चुप रहती
अक्सर लड़की।

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