देखने में सपना
और जीने में पहाड़ जैसी
मरे हुए समुद्रों की हड्डियाँ फैली हैं
कंधे से उतरती हैं चींटियों की कतारें
लोग बैठे हैं फौजी गाड़ियों में
अपनी दुनिया से दूर
सूखे हुए लोग
धरती के हाथ-पैर बाँधने के लिए
ऊबी हुई सतर्क आँखें
एक ही कुनबे के लोग खड़े हैं
अलग वर्दियों में आमने-सामने
ऊपर आसमान का नीला रंग
जहाँ नहीं हैं काँटे के तार पाँच देशों के।
![लद्दाख](https://www.hindiadda.com/wp-content/uploads/ha/2019/12/लद्दाख-.jpg)