लाल चिरैया
लाल चिरैया

एक असंकलित कविता

लिए चोंच में 
घास किरन की 
पूरब में हर सुबह-सुबह क्यों 
लाल चिरैया आती है?

बैठी मेरे घर की छत पर 
देहरी पर 
फिर धीरे-धीरे आँगन में भी 
घास किरन की छितराती है

उछल-कूदकर शोर मचाती 
दाना चुगती, पानी पीती 
फिर किरनों की घास समेटे 
लिए चोंच में 
पच्छिम को उड़ जाती है।

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