क्यों अँधेरों में | कृष्ण कुमार
क्यों अँधेरों में | कृष्ण कुमार

क्यों अँधेरों में | कृष्ण कुमार

क्यों अँधेरों में | कृष्ण कुमार

क्यों अँधेरों में
नया दीपक जलाना चाहते हो ?

सूर्य की किरणें जगत को
क्यों नहीं अब नूर देतीं ?
वृक्ष की वह सघन छाया
क्यों नहीं अब पूर देती ?
बढ़ रहीं सब दूरियों को,
क्यों मिटाना चाहते हो ?

क्यों चमन के फूल सारे
अब नहीं वह कांति पाते ?    
क्यों उपासक मंदिरों में
अब नहीं सुख-शांति पाते ?    
क्यों समय की सोच का अब,
रुख बदलना चाहते हो ?

समय के संगीत का
सम्मान करना चाहिए।
हर गिरे जन को उठा कर
प्यार करना चाहिए।
प्रेम, ईश्वर, प्यार, पूजा,
क्यों जताना चाहते हो ?

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