किसान की पासबुक | नीरज पांडेय
किसान की पासबुक | नीरज पांडेय

किसान की पासबुक | नीरज पांडेय

किसान की पासबुक | नीरज पांडेय

किसान 
की पासबुक के 
पन्ने जल्दी भर जाते हैं 
अउँठे पर लगे स्याही के निशान 
मिटने को होते हैं 
कि फिर लग जाते हैं 
अउँठा हमेशा नीला ही रहता है 
दुनिया में सिर्फ किसान ही है 
जिसकी बनियान का रंग बदलता है 
मिट्टी और पसीने के मेल से बने 
एक बिल्कुल नए रंग में 
उस रंग का नाम नहीं धराया अभी किसी ने 
बनियान की जेब में धरी सारी चीजें 
उसी रंग की हो जाती हैं 
बनियान और पासबुक का रंग 
एक हो जाता है, 
चमेली छाप माचिस 
502 छाप बीड़ी 
और बिन धन की पासबुक 
सब उसी नए रंग में रँग जाते हैं

एक दिन आएगा 
जब पासबुक के पन्ने 
उड़कर संसद के रोशनदानों को ढकेंगे 
और पसीने की महक 
वहाँ बहती हवाओं में घुलेगी 
तब संसद के अँधेरे में साँस लेना मुश्किल हो जाएगा 
खाया पिया सब उगिल उठेगा 
हँफरा छूट जाएगा 
संसद वालों का!

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