खुशियों के गंधर्वद्वार द्वार नाचे। प्राची सेझाँक उठेकिरणों के दल,नीड़ों मेंचहक उठेआशा के पल,मन ने उड़ान भरीस्वप्न हुए साँचे। फूलऔर कलियों सेकरके अनुबंध,शीतल बयारझूमबाँट रही गंध,पगलाए भ्रमरों नेप्रेम-ग्रंथ बाँचे।