खारा पानी | आशा पाण्डेय
खारा पानी | आशा पाण्डेय

खारा पानी | आशा पाण्डेय – Khara Pani

खारा पानी | आशा पाण्डेय

लड़का आज ही इस घर में आया है, नौकरी करने। मगरी, जिसके साथ वह आया है, लड़के के गाँव का है। वह पिछले कई सालों से इस घर में नौकर है। उसी ने मालकिन से लड़के की पैरवी की है।

लड़का पहली बार रेलगाड़ी में बैठा। मगरी ने बताया था कि बड़ी लंबी यात्रा है। कितनी दूर तक की होगी यात्रा! लड़का स्टेशन पर स्टेशन गिने जा रहा था। उसे न जाने किस स्टेशन पर उतरना होगा। दिन बीत गया, दूसरा दिन आ गया। रात में नींद के कारण कुछ स्टेशन लड़के की नजर से छूट गए थे, इसका उसे गहरा अफसोस है।

एक दिन, एक रात। दूसरा भी आधा दिन! झुकझुक करती धड़धड़ाती हुई भाग आई रेलगाड़ी! कितनी बार तो गुदगुदी हो जाती थी लड़के के पेट में। एक बार तो पहाड़ में खुदी सुरंग में ही घुस गई थी रेल! कितनी देर तक अँधेरे में डरा सहमा बैठा रहा था लड़का।

स्टेशन से उतर कर इस घर तक आने में तो उसे एक और अजूबा दिखा। लड़ाकू विमान! एक बड़े से मैदान के एक कोने में खड़ा है। कितने नजदीक से देख लिया लड़के ने हवाई जहाज को! और वह भी कोई ऐसा-वैसा हवाई जहाज नहीं, लड़ाकू हवाई जाहज!

लड़का अपनी माँ से बात करना चाहता है। उसके घर में न तो फोन है और न ही मोबाइल लेकिन गाँव में कई लोगों के घर में फोन भी है और मोबाइल भी। लड़का एक छोटी डायरी में सबका नंबर लिखकर लाया है। एक-दो लोगों के नंबर तो उसे याद भी हैं। मगरी अपने मोबाइल से नंबर मिला रहा है किंतु लड़का चाहता है कि मोबाइल उसके हाथ में आ जाए तो वह खुद नंबर मिला ले। उसे आता है फोन करना। पर, मगरी मोबाइल को अपने हाथ में ही पकड़े है।

घंटी जा रही है। उधर कोई फोन उठाया होगा। मगरी लड़के की माँ को फोन पर बुला रहा है। उसकी माँ फोन पर आ गई है। अब मगरी ने मोबाइल को लड़के के हाथ में दे दिया है। लड़का चहककर बताता है – अम्मा! मैंने यहाँ लड़ाकू हवाई जहाज देखा। बड़े-बड़े पंखे हैं उसके। आकाश में उड़ती है तो कैसी चिरई जैसी दिखती है न? …लेकिन पास से देखो, तब पता चलता है। अरे, बहुत बड़ी होती है। …चार ठो तोप भी यहाँ खड़ी है अम्मा! …जब लड़ाई होती है न, तब यही तोप चलाते हैं।

उधर माँ जानना चाह रही है कि लड़का कुछ खाया-पिया या नहीं? ठीक से तो पहुँच गया? रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई? लड़के को अपनी बात बताने की जल्दी है। उसे माँ के प्रश्न बेतुके लग रहे हैं। वह सिर झटक कर फुर्ती से बोला – अरे हाँ, पानी पी लिया न। …बहुत ठंडा और मीठा पानी था। पानी का ठंडा और मीठा होना लड़के के लिए खुशी की बात थी किंतु उससे अधिक खुशी और आश्चर्य उसे इन नई-नई चीजों को देखने से हुई है। लड़का फिर से अपनी बात पर आ गया – ‘अरे अम्मा, जिस रेलगाड़ी में बैठकर मैं आया वो बहुत लंबी थी। बाहर से देखो तो सारे डब्बे अलग-अलग दिखाई दे रहे थे, लेकिन अंदर से न, सब जुड़े रहते हैं। एक डब्बे से दूसरे डब्बे में जितना मन हो उतना घूमो। पूरी बाजार उसी डब्बे में मिल जाती है अम्मा! चाय, समोसा, मूँगफली, अमरूद, पानी, किताब खिलौने, जो चाहो, ले लो …और पानी बोतल में भर-भर कर मिलता है। जैसे टी.वी. में दिखाया जाता है न, बोतल में पानी, वैसे ही एकदम ठंडा, बरफ जैसा। …जितनी चीजें मैंने टी.वी. में देखी थी न अम्मा, सब सही-सही में देख ली मैंने। रेलगाड़ी, हवाई जहाज, तोप, सुरंग। सब, सब कुछ।

लड़के की बातें सुनकर माँ का दिल भर आया होगा। उसकी आवाज कँपकँपा गई होगी। लड़का पूछ रहा है – क्या हुआ अम्मा? तुम्हारी आवाज घड़घड़ा रही है? …मैं जहाँ आया हूँ न, वह अपने घर से बहुत दूर है। लगता है लाइन नहीं मिल रही है। ऐसा होता है अम्मा, लाइन नहीं मिलती। अच्छा, अब रख दो। कहकर लड़के ने झट से मोबाइल का बटन दबा दिया। मोबाइल बंद हो गया। लड़के ने चमकती आँखों से मोबाइल को मगरी की ओर बढ़ा दिया। देख ले मगरी, मोबाइल बंद करना लड़के को आता है। अरे, वो तो पढ़ने में थोड़ा मन नहीं लगा इसलिए, छोड़ दी पढ़ाई। क्या करता, कैसे पढ़ता? पाँचवी में ही तो था जब बाबू मरे। फिर मजूरी के लिए निकलना पड़ा। जिस समय स्कूल में सालाना परीक्षा शुरू होती, उसी समय खेतों की कटाई और बोझ ढोआई का काम भी शुरू हो जाता। लड़का मजूरी करने में लग जाता। दो वक्त के भोजन का प्रश्न हल करते-करते किताब के सारे प्रश्न भुला जाते उसे। परीक्षा में कुछ लिख ही न पाता। छठीं में दो बार फेल हो गया तो माँ चिंतित हुई। काम कभी मिलता, कभी न मिलता। जिस दिन न मिलता, उस दिन लड़का गाँव के आवारा लड़कों के साथ मटरगश्ती करते घूमता रहता। माँ डरती, कहीं उल्टी-सीधी आदत लग गई तो समझो गया हाथ से। पढ़ना-लिखना तो अब नहीं हो पाएगा इससे। किसी अच्छे घर में नौकर लग जाता तो दो-चार अच्छी बातें ही सीखता।

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मगरी ने लड़के की माँ को उम्मीद दिलाई थी कि वह अपनी मालकिन से बात करेगा। लड़के का भाग्य! मालकिन मान गई; तभी तो मगरी के साथ आया है लड़का।

मगरी लड़के को पूरा घर दिखा रहा है। इतना बड़ा घर! लड़का आश्चर्य में पड़ा है – पूरे घर में छह-सात नल! एक घर में इतना पानी! वह भी मीठा! बाल्टी से नापे तो कितनी बाल्टी होगा? कितना नापे लड़का। एक बाल्टी का पानी खत्म नहीं होगा कि नल खोलो, दूसरी बाल्टी भर जाएगी। घर के लोग जहाँ नहाते हैं वहाँ कितना बड़ा तो हौद जैसा कुछ बना है। मगरी ने लड़के को बताया कि इस हौद को ऊपर तक पानी से भरकर न जाने क्या-क्या उसमें मिलाते हैं, फिर घंटों उस पानी में बैठे रहते हैं। मीठे पानी से नहाते हैं ये लोग!

लबालब पानी से भरा टब, बाल्टी, मटका! जितना चाहो नहाओ, जितना चाहो गिराओ। एक उसका गाँव है, खारे पानी से भरा हुआ। पीने के लिए मीठा पानी तो दो कोस दूर से लाना पड़ता है। बिलकुल सँभल-सँभल कर चलना पड़ता है। बूँद भर पानी भी अगर घड़े से छलक कर गिर जाता है तो कई-गई दिन अफसोस होता है। सुबह उठने से लेकर रात सोने तक बूँद-बूँद पानी जुटाने की चिंता।

याद है लड़के को, पानी के लिए गाँव के परधान ने उसके बाबू की कितनी हुज्जत की थी। वह तो समझ ही न पाया था कि उससे कसूर कहाँ और कैसे हो गया। बाबू के साथ परधान के घर गया था लड़का। दौड़कर खुशी-खुशी परधान को पैलगी करने ही तो झुका था। न जाने कैसे उसका पैर लोटे से टकरा गया। छलक गया घूँट दो घूँट पानी। बस, परधान गुस्सा गए। ऐसा गरियाना शुरू किया कि बाबू की सिट्टी-पिट्टी सब गुम हो गई। पीने का पानी रखा था परधान ने, फेंकना पड़ा था उन्हें। लड़के का मन हो रहा था कह दे – न फेकें पानी, वह पी लेगा। पर, डर के मारे मुँह सूख गया था, बोलता कैसे। उसके बाबू हाथ जोड़े खिसियाए-से खड़े रह गए थे परधान के आगे। डरा था लड़का कि अब घर चलकर बाबू की मार पड़ सकती है। पर, बाबू उसे कुछ नहीं बोले। बस, उसकी अम्मा से इतना कहे कि ई बड़ा चिलबिल्लहा होता जा रहा है, देख सुनकर कुछ करता ही नहीं। मुंडी दबाए रहता है। परधान के लोटा मा गोड मार दिया। मीठा पानी था। पूरा पानी फेंकना पड़ा परधान को।

उस रात लड़का बड़ा बेचैन हुआ था। सो नहीं पा रहा था। उसके बाबू, अम्मा तक से नहीं बताए कि इस नालायक के कारण उन्हें परधान से कितनी गाली खानी पड़ी। कलेजे में हूक उठती रही रात भर। पहली बार जाना था लड़का हूक उठने का दरद।

अब देखो तो कैसा स्वरग में आ गया है लड़का। एकदम घर के सामने ही लपलपाती हुई चिकनी काली सड़क है। गाड़ी, मोटर, फटफटिया सब दौड़े जा रहे हैं। सोनुआ होता तो देखता कि लड़का कितनी अच्छी जगह आ गया है। ऐंठा ही रहता था हमेशा। उसके घर टी.वी. थी न, उसी की धाक जमाए रहता था। कुछ सही, कुछ गलत मिलाकर ऐसी कहानी गढ़ता था कि गाँव के सारे लड़के उसके आगे-पीछे घूमते रहते थे।

वह तो सारी चीजें टी.वी. में देखता था। वो भी, जब लाइट रहती थी, तब। यहाँ तो चौबीसों घंटे लाइट है। लड़का जितना चाहेगा टी.वी. देखेगा। आ कर देख ले सोनुआ, जिन चीजों को वह टी.वी. में देखता था लड़का उन सभी को सही-सही में देख रहा है।

मालकिन ने लड़के से बाथरूम धो डालने को कहा। लड़का मग्गे से थोड़ा-थोड़ा पानी गिराकर बाथरूम धोने लगा। मालकिन ने देख लिया, मगरी पर चिल्लाईं – ‘मगरी इसे ठीक से सिखा कि बाथरूम कैसे धोया जाता है। लग रहा है जैसे तेल लगाकर बाथरूम को चिकना कर रहा है।

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मगरी मालकिन की आवाज पर फुर्ती से आया, बाथरूम में सर्फ फैलाकर ब्रश से रगड़ा फिर बाल्टी भर-भर कर पानी डालने लगा। लड़के का कलेजा मुँह को आ गया – बाप रे इतना पानी, बाथरूम धोने के लिए!

मगरी के सिखाने पर लड़का बाथरूम धोना सीख गया है। अब सिर्फ फैलाकर रगड़ता है और बाल्टी भर-भर कर पानी गिराता है। बाथरूम एकदम चमक जाता है। पर न जाने क्यों जब-जब वह पानी गिराता है उसके दिल में टीस-सी उठती है। वह गिनता है – एक बाल्टी गिराया, दो बाल्टी गिराया, तीन बाल्टी गिराया!! इतने में तो उसकी अम्मा हफ्ते भर के कपड़े धो डालती। उसका जी करता है कि ये पानी, जो यहाँ फेंक बहा दिया जाता है उसे बटोरकर वह अपने गाँव ले जाए। लेकिन क्या करे, पानी को इतनी दूर ले जाना आसान नहीं है। अगर भगवान ने पानी को इस तरह से न बनाकर कुछ अलग तरह का बनाया होता जैसे – पाउडर की तरह, तब वह सारा पानी, जो ये लोग फेंक-बहा देते हैं, घर ले जाता। उसकी अम्मा खुश हो जाती।

पानी भी खिलौना बन सकता है, लड़का यहीं देख रहा है। उस दिन की ही तो बात है मालकिन के दोनों बच्चे बगीचे का नल खोलकर खेल रहे थे। पूरी धार में पानी बह रहा था। लड़के ने दौड़कर नल बंद कर दिया। बच्चे रोने लगे। उनके रोने की आवाज मालकिन तक पहुँची। मालकिन भागती हुई बगीचे में आईं। लड़का सोच रहा था कि उसने नल बंद करके अच्छा काम किया, मालकिन खुश होंगी। किंतु, उन्होंने लड़के को जोरदार डाँट लगाई। बच्चों के खेल में व्यवधान! और वह भी पानी की वजह से!

मगरी समझाता है लड़के को पानी की चिंता मत किया कर, यहाँ बहुत पानी है। देख, मैं तो नहीं करता। इस घर का जो तरीका है उसको समझ और वैसे ही काम किया कर। हर जगह अपनी टाँग मत घुसाया कर।

लड़का मगरी की बात मानता है। वैसा ही करने की कोशिश करता है। पर, न जाने कैसे काम में गलती निकल ही आती है।

लड़का नौकर है। नौकर की उम्र पर ध्यान बाद में जाता है, उसके काम पर पहले। वह डाँट खाता है, झिड़की खाता है, खाना खाता है। लड़का सब कुछ पचाता है। मीठे पानी में सब कुछ पच जाता है।

लड़का, लड़का है। नई-नई चीजें देखकर उसे उन्हें छू लेने का शौक लगता है। नई चीजें नाजुक होती हैं। छूने पर उनमें कुछ न कुछ हो ही जाता है। नई चीजें बड़ी शौक से खरीदी जाती हैं, इसलिए उनके पुराने होने का डर हमेशा बना रहता है। नई चीजों का चिटकना ही नहीं खुरच जाना भी असह्य होता है। लड़का इन बातों को नहीं समझता है। ओवन ऑन कर देता है, फ्रिज खोलकर खड़ा हो जाता है। वह जिज्ञासु है, लेकिन मालकिन उसकी जिज्ञासा का क्या करें? वह झटके से कीमती गिलास उठाता है, मालकिन डर जाती हैं कि अभी तो गिर गया होता – लड़का डाँट खाता है।

वह कई कारणों से डाँट खाता है। कप चिटकाता है – डाँट खाता है। कमरे में कोई नहीं है और पंखा चल रहा है – लड़का डाँट खाता है। दरवाजा खुला है – लड़का डाँट खाता है। डाँट खाते-खाते लड़का इतने भ्रम में रहने लगा है कि वह समझ ही नहीं पाता कि क्या सही है, क्या गलत। जिसे वह सही समझकर करता है वह गलत सिद्ध हो जाता है, लड़का डाँट खा जाता है।

अब लड़के को यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता। पहले सतरंगी-सी लगने वाली ये दुनिया अब उसे बेजान-सी लगती है। गाड़ी, मोटर, सड़क, ओवन, फ्रिज, पंखा, टी.वी. सब बेजान।

दिन भर काम करके रात को जब लड़का लेटता है तो उसे अम्मा की बहुत याद आती है। उसकी अम्मा होतीं तो वह दुबक कर, उनके पास सो जाता। अम्मा उसका सिर सहलातीं, पैर दबातीं। जब उन्हें लगता कि वह सो गया है, तब वो धीरे से उसका माथा चूम लेतीं – वह खुश हो जाता। वह तो आँख मूँद कर सोने का नाटक करता था नींद तो उसे अम्मा के माथा चूमने के बाद ही आती थी।

सोनुआ इस समय क्या कर रहा होगा? जरूर टी.वी. देख रहा होगा। उसकी अपनी टी.वी. है, अपने घर में बैठकर चाहे जब तक देखे। लड़के को तो काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। टी.वी. कब देखे। सोनुआ कम से कम टी.वी. पर आने वाले सीरियल या सिनेमा की कहानी तो बताता था। यहाँ तो कमरे में आते-जाते थोड़ी सी झलक भर मिलती है सीरियल की।

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लड़के को नींद नहीं आ रही है। मगरी ने करवट ली तो लड़के ने पूछ लिया – “दादा कै बज रहा है? मुझे तो नींद ही नहीं आ रही है।”

मगरी मोबाइल की बटन दबाकर नींद भरी आँखों से देखता है – “एक बज रहा है, सो जा, सुबह जल्दी उठना होता है न।”

मगरी करवट बदलकर फिर सो जाता है। लड़का जग रहा है। उसे फिर सोनुआ की याद आती है। वह भी इस समय सो रहा होगा। उसे इतना काम थोड़े ही करना पड़ता है कि हाथ-पैर में दर्द हो और नीद न आए। वह अपनी अम्मा के पास है।

लड़का निराश हो जाता है। उसकी अम्मा अकेली गाँव में पड़ी हैं। मजूरी करने जाती हैं। बाबू थे, तब कभी मजूरी करने नहीं जाना पड़ा था उन्हें। बाबू जाने ही नहीं देते थे। अब बाबू नहीं हैं, वह भी यहाँ आ गया। अम्मा कितनी अकेली पड़ गई हैं। बाबू के गुजर जाने के बाद जब वह घर पर था तब अम्मा को उसके लिए खाना बनाने उठना पड़ता था। खाना बनता तो अम्मा भी खा लेती थीं। अब पता नहीं बनाती-खाती भी होंगी या नहीं।

अगर अम्मा यहीं पास में रहतीं तो! मालकिन के घर में अम्मा को भी कुछ काम मिल जाता तो! किलक कर खुश हो जाता है लड़का। याद आया उसे, एक दिन मालकिन मगरी दादा से कह रही थीं कि – मगरी फैक्ट्री में तेरी बड़ी जरूरत है। रसोई का काम धीरे-धीरे इस लड़के को सिखा दे और तू साहब के साथ फैक्ट्री में जाया कर।

अगर मालकिन उसकी माँ को खाना बनाने के लिए बुला लेतीं तो कितना अच्छा होता। वह मालकिन से कहेगा, उसकी अम्मा कितना अच्छा खाना बनाती हैं। एक बार अगर मालकिन अम्मा के हाथ का खाना खा लेंगी तब कभी अम्मा को काम से नहीं हटाएगी। लड़के को विश्वास है। उसे पैसा नहीं चाहिए। मालकिन चाहें तो उसकी अम्मा को भी पैसा न दें। केवल रहने भर की जगह तथा दो वक्त भोजन दे दें बस। बदले में चाहे जितना काम करवा लें। …यहाँ अम्मा मीठा पानी पिएगी, मीठे पानी से नहाएगी, साथ रहेंगी… कितना अच्छा लगेगा।

लड़का सोचता है जब मगरी दादा उसे रसोई का काम सिखाने लगेंगे, तब वह नहीं सीखेगा, गलती पर गलती करेगा। जब मालकिन परेशान हो जाएँगी तब उसी बीच वह खुद या मगरी दादा से कहकर अम्मा के बारे में मालकिन से बात करेगा।

लड़के से अब तक गलती हो जाती थी किंतु, रसोई के काम में वह जान-बूझ कर गलती करने लगा है। मालकिन नाराज होती हैं, लड़का मन ही मन खुश होता है। लड़का गलती दोहराता है, डाँट दोहराई जाती है। मगरी भी लड़के पर चिढ़ता है। कहता है – “सँभल जा, नहीं तो निकाल दिया जाएगा। फिर से गाँव जाकर उसी गरीबी में रहना। तेरी माँ बेचारी चार पैसे की आस लगाए बैठी रहती होगी और तू है कि काम करना ही नहीं चाहता। माँ की तनिक भी परवाह नहीं है तुझे।”

लड़का गहरे दुख में है। मगरी दादा यह क्या कह दिए! इतनी डाँट, इतनी टोका-टाकी वह क्यों सह रहा है? लड़का जो कुछ सोचता है वह उल्टा ही हो जाता है। मगरी दादा की इस सोच और नाराजगी से तो अच्छा है वह ठीक ढंग से काम करे।

कोशिश करने लगा है लड़का। पर, भूल उससे हो ही जाती है। अभिनय करते-करते वह स्वयं से बहुत दूर चला गया है। उसे अब खुद इस बात का अंदाज नहीं लग पाता कि वह अभिनय कर रहा है या गलती अपने आप हो जाती है। वह महसूस करता है कि उसके भीतर एक-दूसरा लड़का जन्म ले लिया है। जिस पर उसका वश नहीं चलता। उसकी बुद्धि कुंद होती जा रही है।

लड़का बिस्तर बिछा रहा है। चादर टेढी हो गई है। मालकिन चिढ़ गई हैं – “एक काम ढंग से नहीं कर पाता तू, छोड़ दे चादर, जाकर बरतन माँज”

लड़का नल के नीचे जूठे बरतनों को माँज-धो रहा है। अरे, उसे सब धुँधला कैसे दिख रहा है! नल के पानी से कुछ छीटें उड़कर उसकी आँखों में भी पड़ गई हैं क्या!

आज यूँ गीली कैसे हो गईं!

और अब गालों पर!

होंठ तक लुढ़क आया यह पानी!!

इतना खारा! यह नल का नहीं है! क्या फिर से खारे पानी के दिन आ गए!!

लड़का सिर को कंधे की तरफ झुकाकर शर्ट की बाँहों में अपनी आँखें पोछ लेता है और बरतन माँजने लगता है।

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