खबर उड़ी है | रविशंकर पांडेय
खबर उड़ी है | रविशंकर पांडेय
खबर उड़ी है आज
भेड़िये के
फिर आने की
घर-घर में
अफरा तफरी है
जान बचाने की।
धीमी पड़ी रोशनी
जलती हुई मशालों की
रात-रात भर जाग रही
बस्ती संथालों की,
हिम्मत नहीं किसी की
आपस में
बतियाने की।
रह-रह करके यहाँ
शिकारी कुत्ते भौंक रहे
अपनी ही –
हल्की आहट पर
सारे चौंक रहे,
चिंता सब को
अपने-अपने
ठौर ठिकाने की।
नाके बंदी –
मिलजुल कर सब
करो इलाके की
अब जल्दी तैयारी
करनी होगी हाँके की,
घड़ी नहीं यह
ऊहापोह की
रोने-गाने की।