कम देखते हम
कम देखते हम

उस दिन भटक गया रास्ता अपने ही मोहल्ले में
पहुँचा एक अलग ही रास्ते से अपने घर
सब कुछ देखा उलटे हाथ से

अपनी ही गली लगी थोड़ी ज्यादा चौड़ी ज्यादा समतल
जैसे अभी-अभी घिसाई हुई हो उसकी
और घर के ठीक सामने का नीम का पेड़ भी लगा
कुछ ज्यादा कटा-छँटा जैसे अभी-अभी तैयार हुआ हो कंघी करके

See also  सफेद फूल | बाबुषा कोहली

दिशा बदलते ही किसी पेड़ के भीतर का एक और पेड़
सामने आ जाता है
खुलता है एक रास्ते के भीतर से एक और रास्ता
पर हम कितना कम देखते हैं
हमारी नजर एक फंदे में फँसी रहती है
धँसी रहती है एक लीक पर

कई बार तो हम अपने साथ चल रहे एक आदमी को
भी नहीं देख पाते पूरा का पूरा

See also  अमरकंटक | प्रेमशंकर शुक्ला

कई बार तो एक इनसान हमें सिर्फ दो हाथ नजर आता है
और कई बार तो एक झाड़ू
जब वह कुछ कहता हुआ गुजरता है हमारे करीब से
हमें लगता है कुछ सींकें उड़ती हुई जा रही हैं।

Leave a comment

Leave a Reply