कल की लड़ाई के लिए | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी
कल की लड़ाई के लिए | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

कल की लड़ाई के लिए | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

कल की लड़ाई के लिए | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

(सन्दर्भ बंगलादेश)

दम तोड़ता है मनोबल तड़प-तड़प कर
संविधान के पन्ने हवा में फरफराते हैं
जले हुए गाँव और रौंदे हुए नगर
अंतरराष्ट्रीय आचरण संहिता का मरसिया
गाते हैं

लाशों से चिपके चीखते बच्चे
मलबे में टटोलते हैं अनागत का अर्थ
मुँह ढँके अँधेरे में भेड़िए
गाँव का गाँव चबा जाते हैं
अर्थहीन शब्दों के मलबे में चिंचियाता है
राष्ट्रसंघ

आकाश में गड़गड़ाता अहं
चाहता है सब कुछ अपने अनुसार रचना
या फिर नष्ट कर देना।

इस बियाबान सन्नाटे में
घोड़ों की टाप सुनाई पड़ती है
मगर साफ नहीं होता
अश्वारोही आ रहे हैं या लौट रहे हैं

आज की लड़ाई से लौट आया हूँ
बहुत से विश्वस्त साथियों को खोकर
और जानता हूँ
कल भी ऐसा कुछ नहीं होगा
जो आज नहीं हुआ

अभी लड़ाई शुरू हुई है
आगे कुछ भी हो सकता है
अपने ही हथियारों के विरुद्ध भी
लड़ना पड़ सकता है
जैसे भी हो कल की लड़ाई के लिए
और साहस बटोरना होगा
अपनी संवेदनात्मक शिराओं को और तोड़ना
          होगा

और आज की जंगली रात भी
जाग कर ही काटनी होगी
जो हिंसक पशुओं को पनाह देती है।
कुछ निश्चित नहीं
कल की लड़ाई में कौन जीतेगा
किसको कर जाएगी मृत्यु निरस्त्र

कितनी लंबी होगी यह रात
और सुबह होगी भी या नहीं
कब तक चलते रहना पड़ेगा दम साधे
सोए हुए गाँवों
और कर्फ्यू में काँपते नगरों के बीच

कुछ निश्चित नहीं
सिवा एक बीमार संभावना के
कि पीड़ा से मुक्ति के लिए
सहनी होगी पीड़ा
लड़ाई से मुक्ति के लिए
लड़नी होगी लड़ाई।
कुछ नहीं हो सकता
संगीने के साए में
सिर्फ बलात्कर हो सकता है
बंदूक की नली निहत्थी भीड़ को
कहीं नहीं ले जा सकती
सिवा उन नरभक्षी माँदों के
जहाँ जंगल की भाषा में
लोकतंत्र और मताधिकार जैसे शब्दों का
व्याकरण बनता है

अब नहीं जिंदा रह सकता कोई भी मनुष्य
फौजी बूटों के पीछे
पालतू कुत्ते होंगे
प्रेक्षकों का मौन
खलनायक को और भी खूँखार बनाएगा
निरंतर लाल होती जाएगी
सोने की मिट्टी
स्वाधीनता और मुक्ति के लिए चीखता रहेगा
नक्शे का एक और कोना
यह चारों ओर का अहस्तक्षेप
सिर्फ आदमियत को नष्ट करने की साजिश है।

किसे संबोधित करें
रौंदे हुए गाँव
या जलते बंदरगाहों को
किससे माँगें शक्ति
छटपटाते जवानों
या आत्महत्या करती स्त्रियों से
कौन देगा मान्यता मुक्तिवाहिनी को
जो निष्कवच है युद्धभूमि में
संघर्षरत है टूटे हथियारों के साथ
कौन देगा शक्ति उन्हें
जो लौट आए
थके, हारे, आहत, निःशस्त्र
कौन देगा शक्ति उन्हें
जो जीने की अदम्य आकांक्षा के बावजूद
आज की लड़ाई में मर गए
और शायद
कल की लड़ाई में मर जाएँगे।

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