किसको चिंता, किस हालत में
कैसी है अब माँ
सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गईं फर्ज पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन कागज का
वैसी है अब माँ
नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ
फर्ज निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ