कैसे रहोगे | पंकज चतुर्वेदी
कैसे रहोगे | पंकज चतुर्वेदी

कैसे रहोगे | पंकज चतुर्वेदी

अपने दुख 
तुम मुझसे नहीं कहोगे 
तो किससे कहोगे 
और दुनिया में तुम्हारा 
है ही कौन ?

मैंने देखा वह मक़ाम 
जहाँ दुनिया पीछे छूट चुकी थी 
और दुनिया का मतलब 
मेरे लिए 
सिर्फ़ तुम थीं

और तुम भी 
एक असमाप्य दूरी से 
सुनती थीं मेरी पुकार 
उस निपट असहायता में 
मैं फूट-फूटकर रो पड़ा

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तुमने कहा : 
कहते तो हो 
कि रह लूँगा 
पर मेरे बिना 
कैसे रहोगे ?

अपने दुख 
तुम मुझसे नहीं कहोगे 
तो किससे कहोगे ?

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