कैसे देखूँ | प्रभात रंजन
कैसे देखूँ | प्रभात रंजन
डूबती साँझ की व्यथा
कैसे देखूँ –
इन सहमे उदास पेडों को
कैसे देखूँ-
इस स्तब्ध अंधियारी को
कैसे देखूँ –
यह भयावना एकाकीपन
और सूनी बोझिल शामें
यह घुट-घुट, डूबती स्याह शामें –
पूजा घंटियों को शून्य कर देने वाली प्रतिध्वनियाँ
झाड़ियों में झींगुरों का अनवरत गुंजन,
नयन-तट से अवश्य होते पाल
झिलमिलाते द्वीप-
कैसे? कैसे? कैसे? …मैं
कैसे देखूँ !