मामा सोन अपने समय के प्रख्यात धनुर्धर थे।

मामा सोन जंगल में रहते थे, लँगोटी लगाते थे और वनवासियों के बच्चों को तीर-कमान चलाना सिखाते थे। अपना धनुष और अपने बाण भी वह स्वयं बनाते थे। वनवासी खेती करना नहीं जानते थे। वहाँ जमीन ऐसी थी भी नहीं जिस पर आसानी से खेती की जा सके। उनकी आजीविका पशुपालन, वनोपज और शिकार से ही चलती थीं यह जरूरी था कि हम वनवासी, चाहे लड़का हो या लड़की, अपनी रक्षा और आजीविका के लिए तीर-कमान चलाना जरूर सीखें।

मामा सोन को बच्चे घेरे रहते। वनवासी मामा सोन की बहुत इज्जत करते और बच्चों को शिक्षा के लिए उनकी पास भेजते समय बहुत-सा अनाज और सूखा माँस, पशुओं की खाल, बाँस से बनी घरेलू वस्तुएँ और जंगली कंदमूल वगैरह ले आते।

मामा सोन बच्चों के लिए उनकी कद-काठी और जरूरत के अनुसार तीर-कमान बनाते और सबसे पहले उन्हें चिड़ियों के नाम, आदतें, उनकी अपने के मौसम, बैठने के ठिकाने, उनकी प्रजाति की बढ़त-घटत का हिसाब और उनके खाद्य-अखाद्य होने की जानकारी यह सब अपने शिष्यों को बताते। खुद आगे-आगे चलते और थोड़े ही दिनों में अपने शिष्यों को जंगल के चप्पे-चप्पे से परिचित करा देते। कुछ ही वर्षों में उनके शिष्य इतने पटु हो जाते कि एक-एक तीर से चार-चार चिड़िया गिरा लेते।

मामा सोन अपने शिष्यों को तीर-कमान बनाना भी सिखाते। किस प्रकार शिकार के लिए कैसे तीर की जरूरत होगी, किस तरह का फाल चमड़ी को कितनी गहराई तक भेदेगा, कैसी प्रत्यंचा तीर को कितनी दूर तक फेंकेगी, वगैरह। सुना है मामा सोन को ऐसे तीर बनाना भी आता था जो लक्ष्य भेद कर वापस कमान में आ जाता था। देखा तो किसी ने नहीं, लेकिन इस पर अविश्वास करने का भी कोई कारण नहीं था।

धीरे-धीरे मामा सोन की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

एक दिन एक राजकुमार अपने नौकर-चाकर सैनिकों के साथ जंगल में शिकार खेलने आया। राजकुमार को न शिकार का कोई अनुभव था न उसमें पशु-पक्षियों के साम्राज्य में प्रवेश करने की विनम्रता थीं नतीजा यह हुआ कि राजकुमार और उसके साथी हो-हल्ला करते हुए और ललकारते हुए जंगल में घुसे। चिड़ियों ने इन अजनबियों की अजीबोगरीब हरकतों को संदेह के साथ देखा और इधर से उधर तक उड़ कर और शोर मचा कर सारे जंगल को सावधान कर दिया। आसन्न अयाचित खतरे की सूचना पाकर सारे पशु-पक्षी अपनी-अपनी कोटरों खोहों-बिलों-घोंसलों-गुफाओं में दुबक गए। राजकुमार और साथी शिकार की तलाश में खाली हाथ भटकते रहे।

लेकिन शेर किसी से क्यों डरे? तू राजा है तो हम भी राजा है। तू राजा का बेटा है तो हम भी हैं।

तो शेर पहुँच गया राजकुमार के सामने और सहज अभिवादन के भाव से दहाड़ा। खुले शेर को देख कर और उसकी दहाड़ सुन कर राजकुमार के सारे साथी भाग छूटे और राजकुमार चीखने-चिल्लाने लगा। राजकुमार को चीख-चिल्लाहट को आक्रमण की ललकार समझ कर शेर ने राजकुमार पर हमला कर दिया।

ठीक इसी समय झाड़ी के पीछे छिपे मामा सोन के एक शिष्य ने शेर पर तीर चला कर उसका ध्यान बँटाया और राजकुमार को सँभलने का मौका दे दिया। वह शेर को भगाता-भगाता राजकुमार से बहुत दूर ले गया। इस तरह उस दिन राजकुमार की जान बच गई। मामा सोन के शिष्यों ने राजकुमार की सेवा-सुश्रूषा की और उसे सकुशल उसके राज्य में छोड़ आए।

राजकुमार ने घर जाकर सारी विगत राजा को बताई तो राजा बहुत खुश हुआ और बहुत दुखी हुआ। खुश इसलिए हुआ कि उसे बेटे की जान बच गई और दुखी इसलिए हुआ कि ये इतना बड़ा ढोर हो गया और अपनी खुद की भी रक्षा नहीं कर सकता तो मेरे राज्य की और राज्यवासियों की रक्षा कैसे कर पाएगा? उस दिन राजा ने राजकुमार को खूब लताड़ा।

राजा की लताड़ सुन कर राजकुमार सोच में पड़ गया और आखिर उसने धार लिया कि वह भी धनुर्विद्या सीखेगा और मामा सोन से ही सीखेगा।

राजा ने मामा सोन को अपने दरबार में बुला भेजा।

मामा सोन ने पहले तो संकोच किया, फिर इस शर्त पर राजकुमार को धनुर्विद्या सिखाने पर राजी हो गया कि इसके लिए राजकुमार को जंगल में ही रहना होगा।

राजा को भला इस पर क्या आपत्ति होती?

मामा सोन के विद्यांरभ की तिथि निर्धारित की और जंगल लौट आए।

कुछ दिन बाद राजधानी से बेलदार-मिस्त्री-लोहार-सुथार-संगतराश-कारीगरों-मजदूरों का एक बड़ा दल जंगल में आता दिखाई दिया। पता चला जंगल के बीच दो सर्व सुविधा संपन्न महल बनाए जाएँगे जिनमें रहकर राजकुमार धनुर्विद्या सीखेंगे।

लेकिन दो महल क्यों?

पता चला एक राजकुमार के लिए और दूसरा आचार्य शोण के लिए।

यह आचार्य शोण कौन है?

पता चला मामा सोन ही अब आचार्य शोण हैं।

फिर इतना ही नहीं मामा सोन के लिए उपहारों की बैलगाड़ियाँ भी आने लगीं। इनमें जूते, धोती, मुकुट, शिरस्त्राण, मणिमालाएँ, आसन, आसंदी, पर्यंक जाने क्या-क्या अल्लम-गल्लम। सच बात है। लँगोटी लगाने वाला मामा सोन राजकुमार का गुरु कैसे हो सकता है?

इन अभूतपूर्व गतिविधियों से जंगल की शांति भंग होने लगी पेड़ कटने लगे। पानी-हवा दूषित होने लगे। पशु-पक्षी दूर भागने लगे। छिपने और डरने लगे। उग्र और हिंस्र होने लगे। राजा के आदमियों के उत्पात से वनवासी भी परेशान हो गए और अपना घर छोड़-छोड़ कर भागने लगे। कोढ़ में खाज यह कि राजा ने आज्ञा निकाल कर उस क्षेत्र में शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया ताकि सारे पशु-पक्षी वनवासी ही न मार लें, कुछ राजकुमार के लिए भी बचे रहें। कहा यह गया कि वन्य जंतुओं का संरक्षण आवश्यक है। राजा ने यह भी आज्ञा प्रसारित कर दी कि अब से आचार्य शोण केवल राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखाएँगे। पड़ोसी राज्यों को सूचना भिजवा दी गई कि अगली वसंत ऋतु से हमारे यहाँ धनुर्विद्या प्रशिक्षण की उत्तम व्यवस्था आरंभ हो रही है। यही आप चाहें तो इतना कर व इतना दान हमारे राजकोष में जमा करवा कर अपने राजकुमारों को इतनी अवधि के लिए आचार्य शोण के आश्रम में भेज सकते हैं।

अब मामा सोन की कुटिया में अशर्फियों के टोकरे तो भरे हुए थे लेकिन अब कोई उन्हें अनाज, सूखा माँस, पशुओं की खाल, बाँस की बनी वस्तुएँ और जंगली कंदमूल ला कर नहीं देता था। इन चीजों की व्यवस्था भी मामा सोन को स्वयं करनी पड़ती थीं वह कसमसा तो बहुत रहे थे लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे थे। कुटिया के बाहर सैनिकों का पहरा था। वह दिशा मैदान को भी जाते तो गुप्तचर उन पर नजर रखते थे। हार कर उन्होंने खुद को नियति के हवाले कर दिया।

एक दिन राजकुमार ने मामा सोन से पूछा – संपूर्ण धनुर्विद्या सीखने में मुझे कितना समय लगेगा?

मामा सोन ने कहा – संपूर्ण का तो मुझ नहीं मालूम, लेकिन सीखने के लिए तो पूरी उम्र भी कम है। सीखना तो जीवन भी ही चलता रहता है।
राजकुमार ने पूछा – आपको जितना आता है उतना सब मुझे कितने दिन में सिखा देंगे। मामा सोन ने कहा – यह तो सीखने वाले की लगन पर निर्भर करता है। पर फिर भी पूनम के छह चाँद तो मान ही लो।

राजकुमार ने पूछा – क्या अवधि कुछ कम नहीं हो सकती?

मामा सोन ने कहा – खुद मन लगा कर सीखोगे तो हो सकता है पाँच चाँद में ही सीख जाओ। पर उसके बाद भी अभ्यास जारी रखना होगा। सब कुछ अभ्यास पर ही निर्भर करता है।

राजकुमार ने कुछ सोचने के बाद कहा – मैं तुम्हें इस काम के लिए एक महीने से ज्यादा समय नहीं दे सकता। एक महीने में जितना जानते हो फटाफट मुझे सिखा देना। वरना मैं दूसरा गुरु ढूँढ़ लूँगा।

राजकुमार इतना कह कर अपने निर्माणाधीन भवन की ओर जाने लगा। मामा सोन ने उसे पुकार कर रोका और पास जा कर कहा – इससे पहले की विद्यारंभ का दिन आए, मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ घूम कर पूरा जंगल अच्छी तरह देख लो।

जंगल के बारे में गुप्तचरों ने मुझे सब कुछ बता रखा है।

फिर भी, अपनी आँखों से देखने की तो कुछ बात ही और होती है।

देखना क्या है? जंगल में होता क्या है? पेड़। जैसे यहाँ है वैसे ही वहाँ भी होंगे। शिकारी को जंगल के चप्पे-चप्पे से परिचित होना चाहिए। कहाँ दलदल है कहाँ सूखी जमीन, कहाँ गहरा पानी है कहाँ जानवरों का पानी पीने का स्थान, कहाँ मधुमक्खियों के छत्ते हैं, कहाँ चींटियों की बांबियाँ, कहाँ पेड़ों पर पक्षियों ने घोंसले बनाए हैं, कहाँ सियार व लोमड़ी ने माँद में बच्चे जने हैं। किस मौसम में कौन से पक्षी आते हैं और कब कितना… कहाँ शिकार करना चाहिए। अपनी झोंक में शिकार के पीछे भागते हुए यहीं तुमसे किसी निर्दोष मासूम का घरौंदा दब गया या घेंसला टूट गया या छत्ता बिखर गया या बिल धसक गया तो तुम मुसीबत में फँस जाओगे। एक छोटी-सी जंगली मक्खी भी तुम्हारी जान ले सकती है।

मामा सोन की बात सुन कर राजकुमार ने लापरवाही से कहा – मुझे कौन-सा हमेशा जंगल में रहना है? मैं तो अपनी राजधानी में रहूँगा जहाँ अनगिनत सुख हैं। केवल कभी-कभी जब सुखों से ऊब जाऊँगा, अपने साथियों के साथ यहाँ आ जाया करूँगा, आखेट क्रीड़ा के लिए।

मामा सोन को आश्चर्य जैसा हुआ। पूछा – आखेट को तुम्हारी भाषा में क्रीड़ा कहते हैं? हमारी तो यह आजीविका है। हम तो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आखेट करते हैं। वह भी हमें एक ही दिन नहीं करना है इसलिए इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि किसको मारना है किसको नहीं मारना है। हमारे आखेट से पशुओं की संख्या कम नहीं होती…

मामा सोन की बात काट कर राजकुमार बोला – आजीविका थी अब नहीं रहेगी आखेट पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। अब तो मैं ही मारूँगा जितने भी मारूँगा। और जब सिर्फ मुझे ही मारने है तो कितने भी मारूँ। कया फर्क पड़ता है?

राजकुमार की बात सुन कर मामा सोन को धक्का लगा। दुखी मन से लौट गए। अपनी सुबह राजकुमार के नवनिर्मित महल में गए और बोले – कल से तुम्हारी शिक्षा शुरू हो जाएगी। कल ब्रह्म मुहूर्त में उठना और शुरू हो कर मेरे पास आना। हम व्यायाम करेंगे, वनदेवी की पूजा करेंगे और अपने तीर-कमान ले कर प्रशिक्षण स्थल चलेंगे। रोज यही करना होगा।

व्यायाम क्यों? मुझे धनुर्विद्या सीखनी है, मल्लविद्या नहीं। और जल्दी उठने की तो मुझे आदत ही नहीं है। फिर भी, कोशिश करूँगा। राजकुमार ने अरुचिपूर्वक कहा। मामा सोन जाने लगे तो राजकुमार मन ही मन बड़बड़ाया – कल को कहेंगे लँगोटी लगा कर घूमना पड़ेगा। लगता है पूरा जंगली बना कर छोड़ेंगे।

आखिर विद्यारंभ का दिन आया। वनदेवी को प्रणाम करके मामा सोन ओर राजकुमार ने अपने-अपने धनुष और बाण उठाए और जंगल के भीतर एक अपेक्षाकृत खुले स्थान पर आ गए।

मामा सोन ने कहा – तो चलो, चिड़ियों से ही शुरू करते हैं। सामने पेड़ पर ढेर सारी चिड़िया बैठी है। इनमें से वह नीलीवाली चिड़िया देखते हो? वह अपनी तीखी-लंबी चोंच से दूसरी चिड़ियों के अंडे फोड़ देती है। उसे मार गिराओ।

राजकुमार ने तीर चलाया। एक भी चिड़िया न गिरी न उड़ी।

उसने मायूसी से मामा सोन को देखा।

मामा सोन ने कहा – कोई बात नहीं। पेड़ पर सैकड़ों चिड़िया है। किसी एक को निशाना बना कर तीर चलाओ।

राजकुमार ने तीर चलाया। तीर एक डाली से जा लगा। सारी चिड़िया उड़ गईं। लेकिन ये तो हिलती है। राजकुमार ने परेशान हो कर कहा।

कोई बात नहीं, आज घूमते हैं। मामा सोन ने कहा।

दूसरे दिन मामा सोन राजकुमार को फिर उसी जगह ले गए। आज भी उस पेड़ पर पचासियों चिड़िया बैठी थी, लेकिन एक भी चिड़िया हिलडुल नहीं रही थीं। मामा सोन ने राजकुमार से कहा – इनमें से किसी भी एक को गिरा दो।

राजकुमार ने एक-एक करके सात तीर चलाए लेकिन एक भी चिड़िया नहीं गिरीं मामा सोन ने ठीक से तीर पकड़ना, प्रत्यंचा ठीक से खींचना, निशाना ठीक से लगाना आदि सिखाया, पर सब बेकार। मामा सोन ने स्वयं निशाना लगाया। एक साथ दस चिड़िया गिर गईं। राजकुमार ने पास जा कर देखा। सब नकली थीं। वह मायूस हो गया। चिड़िया बहुत छोटी-छोटी है। राजकुमार बोला।

कोई बात नहीं, देखा जाएगा। आओ आज इस तरफ घूमते हैं।

वह दिन भी तीर-कमान उठाए-उठाए घूमने में ही निकल गया। अगली सुबह फिर दोनों उसी स्थान पर पहुँचे।

राजकुमार ने देखा पेड़ पर एक मोटे-ताजे मुर्गे जितनी बड़ी नकली चिड़िया लटक रही है। मामा सोन ने कहा इस पर दस तीर चलाओ। दस में से एक न एक तीर तो इसे गिरा ही देगा।

राजकुमार ने दस तीन निशाना साध कर लगाए, लेकिन मोटी चिड़िया जहाँ की तहाँ थी।

यह बहुत ऊपर है। राजकुमार ने कहा। इतना ऊपर निशाना साधने की कोशिश में मेरा हाथ काँप जाता है।

कोई बात नहीं। इसका भी कुछ उपाय करेंगे। चलो घूमने चलते हैं। आज उस तरफ। राजकुमार ऊबने लगा।

अगले दिन मामा सोन ने एक पटिए पर एक बड़ी-सी चिड़िया बना कर जमीन पर रख दी और राजकुमार को कहा कि सौ कदम दूर से चिड़िया की आँख पर निशाना साध कर दस तीर चलाओ।

राजकुमार ने दस तीर चलाए जिनमें से तीन ही चिड़िया को लगे। आँख पर तो एक भी नहीं।

राजकुमार गुस्से से पाँव पटकने लगा। उसने धनुष भी तोड़ दिया।

मामा सोन ने उसे समझाया-बुझाया और कहा कि चिड़िया का शिकार करने चले हो तो चिड़िया तो छोटी होगी, वह बैठेगी भी पेड़ पर ही और हिलेगी क्या उड़ेगी भी क्या तुम यह सोचते हो कि चिड़िया को उड़ना नहीं चाहिए? क्या तुम यह चाहते हो कि तुम्हारा शिकार परम आज्ञाकारितापूर्वक तुम्हारे सामने मरने के लिए स्थिर बैठा रहे?

राजकुमार को कुछ समझ में नहीं आया, उसने घूमने चलने से भी मना कर दिया और अपने नए महल में जा कर सो गया।

अगली सुबह जब राजकुमार मामा सोन के साथ धनुर्विद्या सीखने के स्थान पर पहुँचा तो उसने देखा कि कोई सौ कदम दूर जमीन पर एक बड़ा-सा खाली तख्ता खड़ा है। उसे समझ में नहीं आया कि यह क्या माजरा है?

मामा सोन ने राजकुमार से कहा – यहाँ खड़े हो कर इस तख्ते पर दस तीर चलाओ। राजकुमार ने ऐसा ही किया। दस में से नौ तीर तख्ते पर लगे थे, एक छिटक गया था। तब मामा सोन ने जमीन पर से एक कोयले का टुकड़ा उइाया और तख्ते पर जहाँ-जहाँ राजकुमार का तीर लगा था, वहाँ-वहाँ एक चिड़िया बना दीं बोले – तुम्हारे लिए फिलहाल यही ठीक रहेगा। अब तुम कह सकते हो कि आज तुमने दस में से नौ चिड़िया मार गिराईं। कुछ दिन इसी का अभ्यास करना। आओ, अब घूमने चलते हैं। आज मैं तुम्हें हुदहुद दिखाऊँगा। वह आई हुई है।

दो दिन बाद राजा का भेजा मंत्री यह जानने आया कि राजकुमार का प्रशिक्षण कैसा चल रहा है? उसे बता दिया गया कि बहुत अच्छा चल रहा है। एक महीने भर की समाप्ति पर भी राजकुमार को बस इतनी ही धनुर्विद्या आ पाई कि वह तख्ते पर तीर चलाए और ‘दस में से नौ’ चिड़िया मार गिराए।

एक महीने पूरा होन पर राजा हाथी-घोड़ों-मंत्री-कारिंदों और एक सैनिक टुकड़ी के साथ स्वयं बेटे का धनुर्विद्या प्रशिक्षण देखने आया। राजा की सवारी के जुलूस के जंगल में आने की खबर नन्हीं चिड़ियाओं ने दूर-दूर तक फैला दी। राजा देखते ही समझ गया कि मामा सोन ने राजकुमार की शर्तों पर उसे धनुर्विद्या सिखाने से एक तरह से साफ मना कर दिया है। राजा को गुस्सा तो अपने बेटे की नालायकी पर आ रहा था – लेकिन जो भी हो, वह उसका बेटा ही नहीं, राजगद्दी का उत्तराधिकारी और भावी राजा भी था – इसलिए उसे कुछ कहने की बजाय राजा ने मामा सोन की मुश्कें कसवा दीं और बेटे से कहा – आज तेरा गुरु ही तेरा तख्ता है। इसी पर तीर चला। क्योंकि मैं चाहता हूँ कि यदि तू नहीं सीख पाए तो दूसरा कोई भी मामा सोन की धनुर्विद्या न सीख पाए। मामा सोन जानते थे एक न एक दिन यह होगा। और वह मन ही मन इसके लिए तैयार भी थे। राजकुमार धनुर्विद्या में एकदम कोरा सही लेकिन तख्ते पर ‘दस में से नौ’ चिड़िया तो मार ही लेता था। फिर यहाँ तो एक जीता-जागता मनुष्य था। मनुष्य से बड़ा कौन सा लक्ष्य हो सकता है। खास कर जब उसकी मुश्कें बँधी हों, और पीठ तख्ते से सटी हो, चारों तरफ सशस्त्र सैनिकों का पहरा हो और सरपरस्ती के लिए पीठ पर राजा का हाथ भी हो।

राजकुमार ने कमान पर तीर चढ़ाया और साँस रोक कर निशाना साधा।

लेकिन इससे पहले की तीर राजकुमार की कमान से निकला, चारों तरफ के घने पेड़ों के पीछे से सैकड़ों तीरों की वर्षा शुरू हो गई। राजा के सैनिकों में भगदड़ मच गई और वे छिपने की और मोर्चा लेने की जगह ढूँढ़ने लगे। कुछ ही देर बाद चारों तरफ से भालू, बंदर, सियार, बाघ, बघेरे, साँप, बिच्छू, ततैया, मधुमक्खी, चील, बाज, हिरन, बारहसिंघा, लकड़बग्घा, ऊदबिलाव, गैंड़े, भैंसे, जिराफ, हाथी निकल आए और भयानक गर्जनाएँ करते हुए राजा के सैनिकों को उठा-उठा कर इधर से उधर फेंकने लगे। जंगल के इस अचानक और अप्रत्याशित आक्रमण से राजा की प्रशिक्षित सैन्य टुकड़ी के भी पैर उखड़ने लगे। चिल्ल-पुकार और बचाओ-बचाओ की चीखों के बीच सैनिक उल्टे पैर भागने लगे। कुछ वफादार सैनिकों ने राजा और राजकुमार को एक घेरे में ले रखा था। जब उन्होंने देखा कि इस हमले का मुकाबला नहीं कर पाएँगे तो वे भी घायल राजा और राजकुमार को ले कर भाग छूटे।

लेकिन कमीने जाते-जाते जंगल में आग लगा गए।

वन के पशु-पक्षी और वनवासी राजा की फौज से तो टक्कर ले सकते थे, लेकिन अग्नि देवता के आगे उनका कोई बस नहीं चल पाता था।

अफसोस कि न मामा सोन को बचाया जा सका न उनकी धनुर्विद्या को। जो वहाँ बचा वह बस राख ही राख थी। राजकुमार का महल भी जल कर राख हो गया था। राजा और उसके वफादार सैनिक भी।

कहने वालों ने कहा कि बरसात के बाद वहाँ वन्य वनस्पति और ज्यादा लहलहा कर फूटेंगी। कहने वालों ने यह भी कहा कि वनवासियों के बीच से ही एक दिन फिर कोई मामा सोन जन्म लेगा।

ऐसा हुआ या नहीं, पता नहीं।

आज मामा सोन के वंशज शहर में बाँस की टोकरियाँ, तार के छींके और गत्ते के तोते-चिड़िया आदि बना कर बेच रहे हैं।

सुना है उनके इलाके में कोई बड़ा बाँध बन रहा है जिससे देश की बड़ी तरक्की होगी।

मामा सोन के वंशजों और शिष्यों को जंगल से हकाल दिया गया है।

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