जिंदगी की रफ्तार बंद
जिंदगी की रफ्तार बंद

कुछ दिनों से ऐसा लगता है 
कि कई साल बिता दिए बेवजह जीते-जीते 
बहुत कुछ किया पर क्या था वो 
कहाँ गया कुछ पता नहीं 
सुबह से शाम और शाम से सुबह तक 
सालों जीते रहे हैं 
कोल्हू के बैल से आँखों में पट्टी बाँध 
हम भी घूमते रहे हैं

एक ही धुरी पे घूमते-घूमते 
सोच हो गई बंद 
सोच बंद तो एहसास बंद 
जिंदगी की रफ्तार बंद

कुछ ही समय बाकी है 
सूरज के ढलने में 
अब कोई शिकवा नहीं शिकायत नहीं 
रूठना और मनाना नहीं

अब न दुख न दिल दुखाने वाली बातें होगी 
न हम होंगे न हमारी यादें होंगी… 
भूल जाएँगे सब धीरे-धीरे 
पाकर खोते-खोकर पाते 
कहाँ से कहाँ पहुँचे हम जीते जीते 
कुछ दिन यादों के संग आएँगे हम 
सालों बीते तो कुछ याद न आएगा 
मालूम है हमें जो हम गए 
हमारा नाम भी मिट जाएगा

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