उमेश चौहान
उमेश चौहान

आज इस नए दौर की महाभारत में
जनतंत्र का अभिमन्यु बचेगा क्या?

बुरी तरह घिरा है वह
सांप्रदायिकता के चक्रव्यूह में
धर्म और जातियों की ताकत समेटे
बड़े-बड़े महारथी तत्पर हैं
अभिमन्यु का वध करने को
कृष्ण तो युद्ध शुरू होते ही
समाधिष्ट कर दिए गए हैं राजघाट पर
राष्ट्रपिता का दर्जा देकर
भरोसा जिस अर्जुन पर था पूरे देश को
वे भी अब सोए हुए हैं शांतिघाट पर
जयद्रथ को यह भी भय नहीं कि
कोई प्रतिकार भी लेगा उससे अब अभिमन्यु के वध का
जनतंत्र का वीर अभिमन्यु निस्सहाय मरने को सन्नद्ध है
इस कठिन महाभारत के चक्रव्यूह में।

जन्म से पहले पिता ने
गर्भस्थ शिशु को दिया था जो ज्ञान
सुना-सुनाकर माता को नित्यप्रति
वह अधूरा ही रह गया शायद माता के सो जाने पर
विजन के रोदन-सा ही गूँजा वह चारों ओर
सहस्राब्दियों की अनैतिकता को मिटाने की जिज्ञासा में
रचे गए नए-नए मूल्य, नया संविधान,
किंतु इन्हीं पर चलते हुए ही आज
लड़खड़ाने लगी हैं देश में
जनतंत्र की मान्यताएँ

इसी लड़खड़ाहट ने जन्मी है
आज की यह महाभारत
जिसमें प्राण देने को उद्यत है अभिमन्यु
गणतंत्र के जन-गण का मन टटोलते हुए
गर्भ में पिता से सीखी गई
आधी-अधूरी युद्ध-विद्या के ही सहारे।
इस युद्ध में अभिमन्यु की मृत्यु तो तय लगती ही है
पांडवों की हार भी निश्चित ही लगती है
क्योंकि इसमें जीत के लिए
केवल संख्या-बल ही निर्णायक है
जो हमेशा की तरह आज भी कौरवों के पास ही है।

यहाँ देखकर भी अनदेखा कर दिया जाएगा
दुःशासन का चीर-हरण जैसा कुकृत्य
यहाँ सुनकर भी अनसुना कर दिया जाएगा
गीता का मर्मोपदेश
यहाँ एक नहीं,
हजारों शिखंडियों की भीड़ जुटेगी नित्य
पितामहों का वध करने
यहाँ नित्य बोलेंगे झूठ युधिष्ठिर
गुरुओं को मृत्यु के मुँह की ओर धकेलने के लिए
यहाँ पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से ही
कोई विचार नहीं होगा धर्म-अधर्म का
न ही किसी रथी, महारथी के मन में
किसी एक पक्ष के प्रति कोई आस्था या लगाव होगा
यहाँ पूरी मौकापरस्ती के साथ युद्ध होगा दोनों तरफ से
और खुलेआम बेंचेंगे रथी, महारथी सब
अपना-अपना संख्या-बल तरह-तरह के लालच में।
इस तरह के कपट-युद्ध में
मारा ही जाएगा जनतंत्र का अभिमन्यु भरी दोपहरी
चलो, अब हम सब मिल-जुलकर सोचें कि
कैसे बचाई जाय अब जनतंत्र की साख
आज इस रणभूमि में सूर्यास्त होने के पहले ही।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *