जड़ें | केदारनाथ सिंह
जड़ें | केदारनाथ सिंह

जड़ें | केदारनाथ सिंह

जड़ें | केदारनाथ सिंह

जड़ें चमक रही हैं
ढेले खुश
घास को पता है
चींटियों के प्रजनन का समय
करीब आ रहा है

दिन भर की तपिश के बाद
ताजा पिसा हुआ गरम-गरम आटा
एक बूढ़े आदमी के कंधे पर बैठकर
लौट रहा है घर

मटमैलापन अब भी
जूझ रहा है
कि पृथ्वी के विनाश की खबरों के खिलाफ
अपने होने की सारी ताकत के साथ
सटा रहे पृथ्वी से।

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