इतिहास में अभागे | दिनेश कुशवाह
इतिहास में अभागे | दिनेश कुशवाह

इतिहास में अभागे | दिनेश कुशवाह

इतिहास में अभागे | दिनेश कुशवाह

इतिहास के नाम पर मुझे
सबसे पहले याद आते हैं वे अभागे
जो बोलना जानते थे
जिनके खून से
लिखा गया इतिहास

जो श्रीमंतों के हाथियों के पैरों तले
कुचल दिए गए
जिनके चीत्कार में
डूब गया हाथियों का चिघाड़ना।

वे अभागे अब कहीं नहीं हैं इतिहास में
जिनके पसीने से जोड़ी गई
भव्य प्राचीरों की एक-एक ईंट
पर अभी भी हैं मिस्र के पिरामिड
चीन की दीवार और ताजमहल।

सारे महायुद्धों के आयुध
जिनकी हड्डियों से बने
वे अभागे अब
कहीं भी नहीं हैं इतिहास में।

सारे पुरातत्ववेत्ता जानते हैं कि
जिनकी पीठ पर बने बकिंघम पैलेस जैसे महल
वे अभागे भूत-प्रेत-जिन्न
कुछ भी नहीं हुए इतिहास के।

इतिहास के नाम पर मुझे
याद आते हैं वे अभागे बच्चे
जो पाठशालाओं में पढ़ने गए
और इस जुर्म में
टाँग दिए गए भालों की नोक पर।

इतिहास के नाम पर मुझे
याद आती हैं वे अभागी बच्चियाँ
जो राजे-रजवाड़ों के धायघरों में पाली गईं
और जिनकी कोख को कूड़ेदान बना दिया गया।

इतिहास के नाम पर मुझे
याद आती हैं वे अभागी
घसिआरिन तरुणियाँ
जिनसे राजकुमारों ने प्रेम किया
और बाद में उनके सिर के बाल
किसी तालाब में सेवार की भाँति तैरते मिले।

इतिहास नायकों का भरण-पोषण
करने वाले इनके अभागे पिताओं के नाम पर
नहीं रखा गया
हमारे देश का नाम भारतवर्ष।

हमारी बहुएँ और बेटियाँ
जिन्हें अपनी पहली सुहागिन-रात
किसी राजा-सामंत या मंदिर के पुजारी के
साथ बितानी पड़ी
इस धरती को
उनके लिए नहीं कहते भारत माता।

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