इससे कम पे अब बात बनेगी नहीं... |प्रतिभा कटियारी
इससे कम पे अब बात बनेगी नहीं... |प्रतिभा कटियारी

इससे कम पे अब बात बनेगी नहीं… |प्रतिभा कटियारी

इससे कम पे अब बात बनेगी नहीं… |प्रतिभा कटियारी

बहरी सत्ताओं के कानों में
उड़ेल देना हुंकार
भिंची हुई मुट्ठियों से तोड़ देना
जबड़ा बेशर्म मुस्कुराहटों का
रेशमी वादों और झूठे आश्वासनों के तिलिस्म को
तोड़ फेंकना
और आँखों से बाहर निकल फेंकना
जबरन ठूँस दिए गए चमचमाते दृश्य
देखना वो, जो आँख से दिखने के उस पार है
और सुनना वो
जो कहा नहीं गया, सिर्फ सहा गया
जब हिंसा की लपटें आसमान छुएँ
तुम प्रेम की कोई नदी बहा देना
और गले लगा लेना किसी को जोर से
अँधेरे के सीने में घोंप देना रोशनी का छुरा
और दर्ज करना मासूम आँखों में उम्मीद
हाँ, ये आसान नहीं होगा फिर भी
इससे कम पे अब बात बनेगी नहीं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *