इस दुनिया को सँवारना | भवानीप्रसाद मिश्र
इस दुनिया को सँवारना | भवानीप्रसाद मिश्र
इस दुनिया को सँवारना अपनी चिता रचने जैसा है
और बचना इस दुनिया से अपनी चिता से बचने जैसा है
संभव नहीं है बचना चिता से इसलिए इसे रचो
और जब मरो तो इस संतोष से
कि सँवार चुके हैं हम अपनी चिता !