इंतजार | आभा बोधिसत्व
इंतजार | आभा बोधिसत्व

इंतजार | आभा बोधिसत्व

इंतजार | आभा बोधिसत्व

इस लोक में
संबंधों के अँधेरे में जब-जब पड़ी मैं
तब-तब उजाले के लिए साधी चुप्पी
जो बहुत कुछ कहती है
अँधेरा हटाने के लिए… बात
फूल जब-जब मुरझाए मैंने पानी दिया
वे खिल गए फूल कर
खुश-खुश गुप्पा
इस तरह से जब-जब
मुश्किलों ने घेरा बिना हल निकले
मैंने पत्थरों से बात की
वे सुन रहे थे… हल
मेरा कर्म इंतजार

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