इनसान | रमानाथ अवस्थी
इनसान | रमानाथ अवस्थी

इनसान | रमानाथ अवस्थी

इनसान | रमानाथ अवस्थी

मैंने तोड़ा फूल किसी ने कहा –
फूल की तरह जियो औ’ मरो
सदा इनसान

भूल कर वसुधा का शृंगार
सेज पर सोया जब संसार
दीप कुछ कहे बिना ही जला
रात भर तम पी-पीकर पला
दीप को देख भर गए नयन
उसी क्षण –
बुझा दिया जब दीप किसी ने कहा
दीप की तरह जलो तम हरो
सदा इनसान

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रात से कहने मन की बात
चंद्रमा जागा सारी रात
भूमि की सूनी डगर निहार
डाल आँसू चुपके दो-चार

डूबने लगे नखत बेहाल
उसी क्षण –
छिपा गगन में चाँद किसी ने कहा –
चाँद की तरह जलन तुम हरो
सदा इनसान

साँस-सी दुर्बल लहरें देख
पवन ने लिखा जलद को लेख
पपीहा की प्यासी आवाज़
हिलाने लगी इंद्र का राज

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धरा का कंठ सींचने हेतु
उसी क्षण –
बरसे झुक-झुक मेघ किसी ने कहा –
मेघ की तरह प्यास तुम हरो
सदा इनसान

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