हुईं मिठबोली हवाएँ | कुमार रवींद्र
हुईं मिठबोली हवाएँ | कुमार रवींद्र

हुईं मिठबोली हवाएँ | कुमार रवींद्र

हुईं मिठबोली हवाएँ | कुमार रवींद्र

हँसे बच्चे
हुईं मिठबोली हवाएँ।

आखिरी तारा सिराकर
रात सोई
धूप ने चूनर सुनहरी
नदी के जल में भिगोई
घाट पर
फिर कही साधू ने कथाएँ।

उड़े पंछी
रोशनी के पंख खोले
किसी मछुइन ने
सगुन के बोल बोले
देख उसको
इंद्रधनुषी हो गई सारी दिशाएँ।

किसी कनखी ने
अलख ऋतु की जगाई
पत्तियों ने दी
छुवन-सुख की दुहाई।
कहा दिन ने –
जो अदेही उसी देवा को जगाएँ।

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