होंठ तक पथरा गए | इसाक ‘अश्क’
होंठ तक पथरा गए | इसाक ‘अश्क’
प्यास के मारे
नदी के
होंठ तक पथरा गए।
मेघदूतों की
प्रतीक्षा में –
थकी आँखें
धूप सहते
स्याह-नीली
पड़ गई शाखें
ज्वार
खुशबू के चढ़े जो थे
स्वतः उतरा गए।
फूल से
दिखते नहीं दिन
कहकहों वाले
तितलियों के
पंख तक में
पड़ गए छाले
स्वप्न
रतनारे नयन के
टूट कर बिखरा गए।