हत्यारे से बातचीत | अशोक कुमार पाण्डेय
हत्यारे से बातचीत | अशोक कुमार पाण्डेय

हत्यारे से बातचीत | अशोक कुमार पाण्डेय

हत्यारे से बातचीत | अशोक कुमार पाण्डेय

एक

तो तुम्हारा घर?

घर छोड़ दिया था मैंने
मुझे घरों से नफरत थी
मैंने सबसे पहले अपना घर उजाड़ा

मुझे नफरत थी छोटे छोटे लोगों से
मुझे गरीबी से नफरत थी, गरीबों से नफरत थी
मुझे मुश्किल से जलने वाले चूल्हे की आग से नफरत थी
मुझे उन सबसे नफरत थी जो मेरे लिए नहीं था
जो मेरे लिए था मुझे उससे भी नफरत थी

असल में मैंने घर नहीं छोड़ा
मैंने अपनी नफरतों का घर बनाया
और फिर जीवन भर उसमें सुकून से रहा

जो घर जलाए मैंने
उनकी चीखें मेरे जीवन का संगीत हैं।

दो

प्रेम ?

प्रेम मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है
मैंने नहीं किया प्रेम और बनता गया मजबूत दिनोदिन
वीर प्रेम नहीं करते, वसुंधरा उनकी भोग्य होती है।

मैंने जंगल देखे तो वह मुझे छिपने की जगह लगी
मुझे तेज तूफान सबसे मुफीद लगे हत्या के लिए
बच्चों को देखकर मुझे कोफ्त होती थी
मैंने चाहा कि रातोंरात बड़े हो जाएँ वे
स्त्रियाँ मेरे जीवन में आई चिखने की तरह

मैंने खुद को प्रेम किया
और खुश रहा।

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तीन

डर नहीं लगता तुम्हें?

डर नहीं लगा कभी मुझे…
असल में लगा
चीखें मेरे डर का इलाज थीं
बहते खून ने मेरी नसों में हिम्मत भरी
डरी हुई आँखों की कातरता ने हरे मेरे डर

जहाँ से शुरू होता है तुम्हारा डर
वहाँ से मेरा खत्म हो जाता है
मैं रात के अँधेरों से नहीं दिन के उजालों से डरता हूँ

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चार

सपने ?

मुझे सपनों से नफरत है
मैं रातों को सोता नहीं उनकी आशंका से
पता नहीं कहाँ से आ जाते हैं नदियों के शांत तट
खेल के मैदान, बच्चे… वे औरतें भी जिन्हें बहुत पीछे छोड़ आया था कहीं
मैं नहीं चाहता लोग सपने देखें और डरना भूल जाएँ थोड़ी देर के लिए

मैं नहीं चाहता लोग सपने देखें और सोचना शुरू कर दें
मैं नहीं चाहता कि लोग सपने देखें और नींद में गुनगुनाने लगें
मैं नहीं चाहता कि सपने देखते हुए इतिहास की किसी दुर्गम कंदरा में ढूँढ़ ले वे प्रेम
और जागें तो चीखने की जगह कविताएँ पढ़ने लगें

असल में मुझे कविताओं से भी नफरत है
और संगीत की उन धुनों से भी जो दिल में उतर जाती हैं
मुझे नारे पसंद है और बहुत तेज संगीत जो होठ और कानों तक रह जाएँ

मैं चाहता हूँ हृदय सिर्फ रास्ता दिखाए लहू को
और जब मैं एकदम सटीक जगह उतारूँ अपना चाकू
तो निकल कर जमीन को लाल कर दे
मैं इतिहास में जाकर सारे ताजमहल नेस्तनाबूद कर देना चाहता हूँ
और बाज बहादुर को सूली पर चढाने के बाद रूपमती को जला देना चाहता हूँ

मैं उन सारी किताबों को जला देना चाहता हूँ जो सपने दिखाती हैं
मैं उनके सपनों में अँधेरा भर देना चाहता हूँ
या इतना उजाला कि कुछ दिखे ही नहीं।

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पाँच

लेकिन?

जाइए मुझे अब कोई बात नहीं करनी!

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