हँसी की तासीर | अभिज्ञात
हँसी की तासीर | अभिज्ञात

हँसी की तासीर | अभिज्ञात

हँसी की तासीर | अभिज्ञात

तुम जानो, बहुत दिनों से नहीं हूँ मैं – अर्थ
तुम मानो, बहुत दिनों से नहीं हूँ – प्यास
तुम हँसो, बहुत दिनों से हूँ मैं – थिर

॥क॥

मैं झुक गया हूँ, जहाँ मैं चल रहा था वहीं।
उसी रास्ते के आगे। मैं रास्ते के आगे प्रार्थनारत हूँ।
क्यों; मैं चूका, कहाँ – यह मत खोजो।
मैं चूक गया था रास्ते से दहलकर।
है भी विकराल।
रास्ते से मुक्त करो छूकर मुझे।
आओ। तुम जानो, बहुत दिनों से नहीं हूँ – अर्थ।
मुझमें भरो थोड़ा सा।
बाकी तो भरेगा ही स्वयं, अगर वह सचमुच में हुआ अर्थ।
नहीं भी भर सका, हो ही जाएगा किसी न किसी के लिए रत्ती भर अर्थ।

॥ख॥

मैं गले तक क्यों हूँ भरा।
भरा भी हूँ या हूँ इकहरा।
प्यास ठुनके भौहों पर – अधरों में
आँखों में, हाथों में जगे, मगर लुप्त।
भीतर कुछ क्या हुआ?
प्यास का मर जाना होता नहीं किसी भी भाँति।
हुआ है तो कहाँ जाकर सोई है प्यास की बच्ची।
कान खींचकर लाओ कोई।
दिन चढ़े तक सोना ठीक होता नहीं
प्यास ही सोई रही तो जगेगा क्या?
ओ प्यास, मुझे पी। मुझे लग। प्यास री।
कस के लग। लग मुझे।

॥ग॥

हँसो। सहसा। मुझे पर नहीं – में।
थिर है कहीं कुछ – क्या पता प्राण ही न हो मेरा।
प्राण न भी हो थिर, प्रयत्न तो हुआ ही हुआ है।
उसे झिंझोड़ो। हालाँकि हँस के झिंझोड़ना होता नहीं किसी से।
तो फिर हँस के कुछ और करो। क्या चौंकाओगी?
अच्छा चलो बजा दो।
हँस के बजा सकती हो – थिर हवा, थिर नदी, मौन अंततः
प्रार्थना हो सकती है पराजित हँसी से
बढ़ सकती है प्रार्थना से हँसी की तासीर।
हँस दो मुझमें।
बहुत दिनों में हो जाऊँ – अर्थ। हो जाऊँ गति।
जग जाए प्यास।
जानो। मानो। हँसो तो।

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