हँसी के लिए प्रार्थना | अरुण देव
हँसी के लिए प्रार्थना | अरुण देव

हँसी के लिए प्रार्थना | अरुण देव

हँसी के लिए प्रार्थना | अरुण देव

जीवन के जंगल, रेत, पहाड़ में
कलकल सुनें हम हँसी की नदी का

हँसी की चमक में
धुल जाए मन का कसैलापन
हो जाए आत्मा उज्ज्वल

यह हँसी निर्बल, निर्धन, निरीह पर न गिरे
न इसके छीटें छीटाकशी करें जो रह गए हैं पीछे
थक कर बैठा गए हैं कभी पथ में
उतर गए हैं कहीं अपने में ही नीचे

बह जाएँ रोजाना के कीच, कपट, कपाट

निर्बंध, निर्द्वंद्व, निष्कलुष यह हँसी
जोड़ें नदी के निर्जन द्वीपों को
सरस, सहज, सहयोगी बनें हम

स्वाद हो ऐसा इस हँसी का
जो भूखे, दूखों को भी रुचे

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *