हम भटकते बादलों को
ओ हवाओं थाम लो
इंद्रधनुष के रंग छिपाए,
ढेरों पानी भर कर लाए
मजदूरों सा बोझ उठाए,
दिशाहीनता से घबराए
हम सागर के वंशज होकर
फिर भी हैं गुमनाम लो!
गो समुद्र से रचे हैं,
खारेपन से पर बचे हैं
हम नहीं अलगाववादी
चिंतनों के चोंचलें हैं
धरती को शीतल करने का
हम से कोई काम लो।
मीठे जल का कोश हैं हम
स्वार्थ से निर्दोष हैं हम
त्याग का संतोष हैं, पर
द्वंद्व में आक्रोश हैं हम
सृजन का सुख हैं, मगर हम
प्रलय को बदनाम लो।