गीत नदियों के किनारे | राजकुमारी रश्मि
गीत नदियों के किनारे | राजकुमारी रश्मि
गीत नदियों के किनारे, मन गजल के गाँव में
बाँध दी पायल सुरों ने, बाँसुरी के पाँव में।
चाँदनी उतरी, नदी की देह
झिलमिल हो उठी
और फिर, उस देह के भीतर
कहीं से लौ उठी
पाल सुधियों के तने, फिर दूर जाती नाव में।
एक झोंका प्यार का
कण कण सुवासित कर गया
और सोई चेतना में
दीप जैसे घर गया
एक परिमल गंध रोपी प्राण ने उस ठाँव में।
ले उठा सागर हिलोरें
ज्वार नभ छूने लगा
फासला भावुक पलों का
और कम होने लगा
मन रहा बैठा अकेला इक शिला की छाँव में।