गंदा पानी | हरीशचंद्र पांडे गंदा पानी | हरीशचंद्र पांडे थके भारी बस्ते सेकल शाम फिर बाहर कूदा आर्कमिडीजऔर दोहराने लगाअपना सिद्धांत आज सुबहएक बहुत अच्छी कविता पढ़ी थी मैंने जितने भर में छपी है कविताक्या उतना गंदा पानीछँटा होगा ?