Tushar Dhawal
Tushar Dhawal

तुम्हें देखे से नहीं 
छुए से 
हुआ था इश्क 
है न गेब्रियेला !

एक छुअन थी 
आँखों से भरी 
एक साँस थी कोसी की सगी 
एक तुम 
एक मैं 
और दहकता मांस था 
हमारे बीच

एक एक छुअन सिहरती थी 
अनादि कंप में 
तुम सदा से थी 
मैं सदा से था 
अजनबी एक प्रेम आ-जा रहा था 
और द्रुत ताल पर धड़कनें 
आवारा थीं अनगढ़ी जंगल-जनी

याद है गेब्रियेला 
ब्यूनस आयर्स खुले आकाश तले 
सिर्फ और सिर्फ संभोग था 
मैं नाथों से नथा हुआ 
तुम खुली हुई जैसे कि आकाश 
जो अपने अँधेरे से दहकता था 
मैंने कहा प्लेटॉनिक 
तुमने कहा देह

हम धड़कता मांस थे उस रात 
और दहकता जंगल थी वह रात 
जहाँ कोई तारा टूटा नहीं था 
शिराओं में बहता एक प्रपात था 
जो मुझसे तुममें उतरता रहा 
जब बरस चुका था आकाश का शहद 
तुमने चाट लिया था 
अपनी भोगाकुल जीभ से जीवन का सब रस 
एक करवट जितने क्षण में 
मैंने पाया कि 
तुम्हारे संग 
बेकल बावरा बेबंध 
कितना रिक्त 
कितना मुक्त था मैं

तुम्हें भी लगा था गेब्रियेला?

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