फागुनी शाम | नामवर सिंह
फागुनी शाम | नामवर सिंह
फागुनी शाम
अंगूरी उजास
बतास में जंगली गंध का डूबना
ऐंठती पीर में
दूर, बराह-से
जंगलों के सुनसान का कूँथना।
बेघर बेपरवाह
दो राहियों का
नत शीश
न देखना, न पूछना।
शाल की पँक्तियों वाली
निचाट-सी राह में
घूमना घूमना घूमना।