एक टूटता हुआ घर | ज्ञानेन्द्रपति
एक टूटता हुआ घर | ज्ञानेन्द्रपति

एक टूटता हुआ घर | ज्ञानेन्द्रपति

एक टूटता हुआ घर | ज्ञानेन्द्रपति

एक टूटते हुए घर की चीखें
दूर-दूर तक सुनी जाती हैं
कान दिए लोग सुनते हैं
चेहरे पर कोफ्त लपेटे

नींद की गोलियाँ निगलने पर भी
वह टूटता हुआ घर
सारी-सारी रात जगता है
और बहुत मद्धिम आवाज में कराहता है
तब, नींद के नाम पर एक बधिरता फैली होगी जमाने पर
बस वह कराह बस्ती के तमाम अधबने मकानों में
जज्ब होती रहती है चुपचाप
सुबह के पोचारे से पहले तक

Leave a comment

Leave a Reply