एक स्त्री की आँच में | प्रेमशंकर शुक्ला
एक स्त्री की आँच में | प्रेमशंकर शुक्ला

पछिल जाओ उलझनों
अभी –
एक स्त्री की आँच में हूँ

स्थगित कर गिरिस्ती की झंझटें
आई है अभी-अभी
मेरे पास
बज रही है मेरे सीने में
उसकी साँस
पछिल जाओ उलझनों
पछिल…

सान ली है हमने
एक-दूसरे में अपनी काया
एक शाश्वत-छंद में
घुलने लगी है हमारी देह
एक लय में लग गई हैं
हमारी साँसें
पछिल जाओ उलझनों
पछिल…

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खाली कर दो अभी
इतना खाली –
कि एक स्त्री समो सके
मेरा अंतस्
पछिल जाओ उलझनो
पछिल…
अभी एक स्त्री की आँच में हूँ

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