एक रात जिंदगी | गीताश्री – Ek Raat Jindagi
एक रात जिंदगी | गीताश्री
वह धीरे धीरे खुल रही थी और मेरी आँखें धीरे धीरे मुँद रही थी कि अचानक उसकी आवाज बिल्कुल पास से आती हुई सुनाई पड़ी।
‘आई अलसो हैव ब्वायफ्रेंड…’
हैं…!! मेरी नींद झटके से गायब।
‘यस… इसमें चौंकने की क्या बात है? आई एम नौट सिंगल… क्या मेरा नहीं हो सकता…’ उसने उलाहना दिया।
अब मैं क्या करती। उसने बात ही ऐसी कर दी थी कि मैं चौंक पड़ी। मेरी नींद उड़ाने का सारा कसूर मैं उसे देने वाली थी कि उसे गंभीर देखा। मैं बेड पर अधलेटी सी थी, उठ बैठी। रात के तीन बज रहे थे। सारी रात इनके किस्से सुनते रहो, अंतहीन किस्से। मुझे इनसे मिलवाते हुए डिलाइला ने कहा था कि तुम्हे तोप के गोले से मिलवाना है। आज तक ऐसी दिलचस्प औरत नहीं देखी होगी। बस एक बार मिल ले, साथ छोड़ने का मन नहीं होगा। मेरी उत्सुकता जगी। चल मिल लेते हैं। जब जब पंजिम की शामें गर्म होती हैं, डिलाइला इसी तरह के कुछ किरदार ढूँढ़ लाती है, ताकि एसी में बैठकर कहानियाँ सुनें और सो जाएँ। पता नहीं डिलाइला को नमूने मिल भी जाते हैं, कहाँ कहाँ से। कभी कभी तो मुझे लगता कि पूरा पंजिम रहस्यमयी औरतों से भरा पड़ा है। मुझ जैसे शुद्ध व्यवहारिक दुनिया में जीने वाली लड़कियाँ इस विचित्र लोक में विचरते हुए गड़बड़ा जाती हैं। फिर मैं ऊबकर डिलाइला को हाथ जोड़ती… माफ कर दे बहन… इससे अच्छा तू दोना पाउला ले जाकर अच्छी अच्छी फिश खिला दे… हकूना मटाटा रसियन रेस्टोरेंट में गाना सुनवा दे, फ्लोर पर थिरकवा दे… लेकिन ये किसिम किसिम की पुरातात्विक महत्व की एतिहासिक औरतों से मिलवाना छोड़ दे। हर शहर में अकेली औरतो का एक झुंड होता है जो एक वृत्त बनाकर एक दूसरे के साथ जीती मरती हैं। उनके लोक में किसी के ब्यायफ्रेंड की घोषणा किसी धमाके से कम नहीं है। डिलाइला इस तरह की खबर को ब्रेकिंग न्यूज कहती थी। आज अभी अभी ब्रेकिंग न्यूज मिली कि इस वृत्त की एक स्त्री के पास कोई पुरुष मित्र भी है। ये खबर फैल जाएगी कल तक। लेकिन फिलहाल मुझे इनकी पूरी कहानी सुनने के लिए रात खराब करनी होगी। डिलाइला को पता नहीं क्यों इतना मजा आता कि वह मुझे विचित्र किंतु सत्य की तरह इन सबसे मिलवाती चलती और मैं पक रही हूँ, इस दिशा में इसने सोचना बंद कर दिया था।
मेरे सामने जो 55 साल की साँवली स्त्री बैठी है, इसको देखकर मुझे घोर अरुचि हुई। मैंने तय किया कि बेड पर पड़े पड़े इनकी बाते सुनते हुए सो जाना बेहतर रहेगा। मुझे क्या पता था कि नींद से बाहर एक रहस्यलोक मेरा इंतजार कर रहा है और जो मेरी नींद उड़ा देगा।
डिलाइला भी चौंकी।
रियली…
इस उम्र में…? मेरे मुँह से निकला और उसने तत्काल मुझे घूरते हुए झाड़ दिया।
व्हाट डू यू मीन माई डियर… इस उम्र से क्या मतलब…?
आई मीन… आपके बच्चे बड़े हो गए हैं, अभी आप उनके प्रेम किस्से सुना रही थीं… इसीलिए…
मैं हकलाने लगी।
डिलाइला ने बात सँभाली। अरे छोड़ो यार… ये नया क्या बवाल है… सुनाओ…
मेकअप की परतों में अपनी उम्र को छिपाकर रखने वाली ये स्त्री थोड़ी देर पहले अपने आईपैड में कुछ तस्वीरें दिखा रही थी। हसीन लड़के के साथ। हसीन लड़की थी। ये मेरा बेटा, ये उसकी गर्ल फ्रेंड… एक से एक फोटोज… दिखा दिखा कर गदगद थी। कैसे बेटा इस लड़की से मिला, कैसे दोनों शादी से पहले साथ रहकर एक दूसरे को समझ रहे हैं… कैसे लड़की बिंदास है, बेटा मस्त है। ये मेरी बेटी है, ये उसका ब्वायफ्रेंड है, दोनो लिव इन में हैं। शादी नहीं करेंगे, कहते हैं हम एसे ही अच्छे। मैंने गल्ती से पूछ दिया कि आपकी बेटी का व्वायफ्रेंड है और आप उसे सबको दिखाती है… वाह… खुल कर बताती भी हैं लिव इन के बारे में…।
उनका मूड अचानक बदला – आई हैव अलसो…
माता जी तो दो कदम आगे निकली। मुझे पता नहीं क्यों, लगा कि वह अपने बारे में बताने का रास्ता तलाश रही थी इसलिए पहले बेटा बेटी से बात शुरू की और सीधा अपने ऊपर बात ले आई।
मेरे मुँह से आंटी निकलते निकलते रह गया। हमारे बीच आधी उम्र का फासला तो था ही। अच्छा हुआ, नहीं तो मैं बहुत बड़े रहस्योदघाटन से वंचित रह जाती।
वे आईपैड में अपने ब्वायफ्रेंड का फोटो निकाल रही थीं हमें दिखाने के लिए। डिलाइला को ये बात पहली बार पता चली। चौंकने की बारी उसकी भी थी। मैंने चुप्पी का ताला जड़ लिया था। बाद में मुझे अहसास हुआ कि मेरा फैसला अच्छा और समयानुकूल था।
ये हैं, मेरे साथ खड़े, हैंडसम गाई… मेरा ब्वाय फ्रेंड…
डिलाइला ने झुक कर फोटो देखा और जोर से चिंहुक पड़ी। मैंने उसके रिएक्शन पर ध्यान देते हुए फोटो देखा। खुले बालों वाली कमनीय स्त्री पैंट-शर्ट में थीं और साथ में गब्दू सा गंजे सिर वाला बुजुर्ग सा आदमी। चेहरे मोहरे से संभ्रांत दिखने वाले। दोनों पास पास खड़े थे लेकिन अंतरंग नहीं दिखे। एसा लगा जैसे दो पड़ोसी मुल्क, फोटोग्राफर को पोज देने के लिए साथ खड़े हों…। वह बोली – बहुत शर्मीले हैं, पब्लिक प्लेस में थोड़ा परहेज… उनकी अपनी फैमिली भी तो है। बच्चे, बहू, पत्नी, भरापूरा परिवार…।
मुझे तो कोई समस्या नहीं, बेटा और बेटी जानते हैं, दे सपोर्ट मी… ये देखो, डायमंड रिंग, मेरे ब्वाय फ्रेंड ने दी है। मैं हमेशा पहनी रहती हूँ।
वह बोलते हुए दमक रही थी। उम्र का फासला कब का मिट चुका था। उनकी सूखी आँखें पनिया गई थीं। वह एक युवा स्त्री में बदल चुकी थीं जो अपने प्रेम के किस्से सबको सुना सुना कर निहाल होना चाहती थी। लड़की जब भी प्रेम में होती है तो चुप नहीं रहना चाहती। वह चाहती है किसी को सबकुछ शेयर करे, बताए कि उसका प्रेमी उसे कितना चाहता है। तब उसे किसी बदनामी का भय नहीं होता। वह मादकता बौराए वाली स्थिति में पहुँच जाती है।
मैं पिछले पाँच साल से इनके साथ रिलेशनशीप में हूँ…हम बहुत प्यार करते हैं एक दूसरे से। मेरे दुख सुख का भी खयाल रखते हैं। अक्सर घर आते हैं। जब भी फ्री होते हैं। मैं उनकी फैमिली के बारे में ज्यादा नहीं जानती। बस उनसे मिली और फौलिंग लव विद हिम…। ही इज वेरी रिचमैन।
बहुत सपोर्ट है मुझे। इमोशनली एंड फाइनेंशियली, आई टोटली डिपेंड औन हिम।
हम छुट्टियाँ बिताने बाहर भी जाते हैं… वह लगातार बता रही थीं। वह डिलाइला से ज्यादा मुझे सबकुछ बताने पर आमादा थीं। हमारी सारी बातचीत उनकी प्रेमकहानी के आसपास सिमट गई थी।
डिलाइला की आँखें फैली हुई थीं जैसे उसने कोई अनहोनी बात सुन ली हो। मैं उन्हें सुनना चाहती थी। बेड पर आराम से लेट गई। उन्होंने मेरी तरफ तकिया बढ़ाया। उन्हें एक अच्छा श्रोता मिल गया था।
मैं अपने हसबैंड के डेथ के बाद बेहद अकेली थी, सुधा… यू नो… बच्चे अपनी दुनिया में और मैं एक बड़ी हवेली में अकेली। कोई दोस्त भी नहीं… अकेली रेस्तराँ में जाकर गाने गाती या चुपचाप बैठकर गाने सुनती। लोगों को देखती और आनंद लेती।
वे कहाँ मिले आपको?
मेरे सवाल से वे मुस्कुराई। उनकी उँगलियाँ आईपैड के स्क्रीन पर लगातार थिरक रही थी। शायद कुछ तलाश रही थीं।
एक रेस्तराँ में… जहाँ वे भी अक्सर अपने दोस्तों के साथ आते थे।
हम्म्म्म… क्या आपके रिश्तेदार नहीं है… यहाँ…?
हैं भी, नहीं भी… कहने को हैं… मगर वे मुझे अपना नहीं मानते… मैं रिजेक्टेड माल हूँ।
एसा क्यों…?
मैं उनकी ब्याहता नहीं थी। मैं उनकी सेक्रेटरी थी। मैं तब 19 साल की थी और वे 53 के। सोचो कितना अंतर रहा होगा उम्र का हमारे बीच। उन्होंने मुझे अपने पास रख लिया। जब मेरी माँ ने आपत्ति की तो उनका मन रखने के लिए हमने शादी कर ली। हम कन्वर्ट हो गए थे। इस्लाम कबूल कर लिया था। पहले मैं नताशा डायस थी, फिर मैं शाइस्ता ओबेराय बनी। मेरी माँ कहा करती थी कि इस आदमी से शादी करने की उम्र तो मेरी है, तुम क्यों कर रही हो।
डिलाइला पता नहीं कब उठकर पानी लाने चली गई थी। मैं उनकी कहानी में डूब रही थी। ये कहानी कहीं पहले भी सुनी थी। ये सारी बातें सुनी हुई सी क्यों लग रही है… मेरी स्मृतियों में कुछ सरगोशियाँ सी जमी हैं… वह उबलने लगी। किसी की कहानी से मिलती जुलती है, उनकी कहानी… शायद मेरे बहुत करीब के लोगो से…। शाइस्ता बोल रही थी, और मैं स्मृतियों की सघन यात्रा पर थी।
जानती हो, शादी तो कर ली, पर वे हमारे साथ कभी नहीं रहे। जब वे मरे तो मुझे दूर से देखने की इजाजत भर दी गई। जायदाद में एक पाई भी नहीं मिली। दो छोटे बच्चों के सिवा कुछ छोड़ कर नहीं गए। जब तक रहे, मैं बहुत ऐश में रही… उसके बाद मैंने जो जिया, जो भोगा… वह अकल्पनीय है, किसी के लिए…
कहाँ खो गई…
आँ हाँ… नहीं कहीं नहीं… बस सोचने लगी थी… आपके बारे में… कितना सब आपने भोगा… जिया… कैसे इनका सामना किया होगा…
डिलाइला थोड़ी गंभीर दिख रही थी और उसकी रुचि जैसे शाइस्ता की कहानी से खत्म सी हो गई थी। वह कसमसा सा रही थी। मानो वह अचानक शाइस्ता की मौजूदगी से उकता गई हो। शाइस्ता इस वक्त जिंदगी के पन्ने खोलने में व्यस्त थी। उसे किसी के रिएक्शन की परवाह नहीं थी। ना रात की फिक्र ना हमारी नींद की। उसकी आँखों में जैसे बीते कई दशक करवटें ले रहे थे।
वह 19 साल की युवा लड़की थी, जिंदगी से भरी हुई। जो अपने घरवालों की गरीबी दूर करने के लिए बीच में पढ़ाई छोड़ कर नौकरी की तलाश में ओबेराय हाउस पहुँच गई थी। माँ की चिठ्ठी मिली, पढ़ाई वढ़ाई छोड़ो, कमाने की सोचो। घर चलाना मुश्किल हो रहा है… छोटी सी जान, अचानक कौलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़ कर निकल पड़ी रोजगार की तलाश में। उसके युवा स्वप्नों के मोहभंग का दौर शुरू हो चुका था। वह ठीक से जवान नहीं हुई थी, उसका इंतजार किसी और को था। सीने में अरमान दबाए, आँखों में उम्मीद लिए जब वह ओबेराय मेंशन पहुँची तो पहली बार जिंदगी की सच्चाई टकराई। वहाँ रिसेप्शन पर बैठे एक खड़ूस टाइप आदमी ने रोक दिया।
कहाँ जा रही हो, इंटरव्यू का टाइम खत्म है।
सौरी… मैं देर हो गई। बस देर से मिली। प्लीज… एक बार मिलवा दें… प्लीज… वह गिड़गिड़ा रही थी।
वह डाँटने की मुद्रा में उसे टाल रहा था। पाश्चात्य परिधान वाली ये साँवली लड़की उसे अपने बौस की सेक्रेटरी के लायक नहीं दिख रही थी। उसने सोचा होगा कि उसे तो नौकरी मिलेगी नहीं, टाल ही दो तो बेहतर।
नताशा कहाँ हार मानने वाली… प्लीज… पाँच मिनट के लिए… क्या पता मुझे काम मिल जाए। नताशा वहाँ से बिना इंटरव्यू दिए जाने को तैयार नहीं थी। वह लगभग धरना देने के मूड में थी। उस आदमी का बस चलता तो नताशा को धक्के मार कर बाहर कर देता। दोनों की नोंकझोंक के बीच रिसेप्शन पर फोन बजा और चमत्कार हो गया। एक खड़ूस आदमी की मुद्रा अचानक दयालु जैसी हो गई।
जाइए मैडम जाइए… सर ने अंदर से आपको देख लिया है… जाइए… बुलाया है। नताशा को लगा वह आदमी दाँत पीस रहा है। जब वह लौटी तो उसका जीवन बदल चुका था। वह आदमी रिसेप्शन से गायब था। शायद उसे पता लग गया था और वह नताशा का सामना नहीं करना चाहता था।
वाऊ… घबरा गया होगा स्साला… मैं हँसी जोर से। रोमांच हो रहा था। बेहद दिलचस्प और फिल्मी सिचुएशन थी। एक पल में जिंदगी बदल गई एक लड़की की।
फिर क्या हुआ नताशा…
अब मैं शाइस्ता हूँ… वह मुस्कुराई।
यस यस… आई नो… शाइस्ता जी…
नो जी वी… कौल मी शाइस्ता… इतना जी वी ना बुलाओ… बड़ा भारी भरकम होने का बोध होता है यार…
ओके… फाइन… शाइस्ता…
उस जिद्दी सी स्त्री ने मनवा लिया। डिलाइला ऊँघने लगी थी। उसका झबरू कुत्ता रह रह कर कूँ कूँ कर रहा था। उसे अपनी उपेक्षा का अहसास हो रहा था। झबरू ने जोर से माथा झटका तो डिलाइला चैतन्य हुई।
चल यार… बाकी बातें कल कर लेंगे… सुबह होने को है… कल का दिन खराब हो जाएगा। हमें कल पंजिम की खाक छनानी है। मैंने छुट्टी ले ली है… नहीं तो कल दिन भर सोते रह जाएँगे…
डिलाइला को बीच में ही रोका शाइस्ता ने…
नहीं, अभी बात पूरी हुई कहाँ… कल किसने देखा है डार्लिंग… हाँ अगर चैताली सोना चाहे तो कोई बात नहीं…
अरे नहीं… डोंट वरी डिलाइला… कल मैनेज कर लेंगे… इतनी दिलचस्प रात से मैं क्यों वंचित रहूँ… अभी अभी तो परी कथा शुरू हुई है।
डिलाइला ने लेटे लेटे हाथ बढ़ाकर झबरू को सहलाया और मुझ पर रहम वाली नजर फिराई। उसे मेरी दिलचस्पी शायद फालतू की लग रही थी। या कहाँ फँस गई टाइप कुछ कुछ…। उन आँखों में भी कुछ था… बाहर आना चाहता था। शायद वह भी कुछ कहना चाहती हो… कभी कभी हमारी आँखें, जिंदगी का इनबौक्स बन जाती हैं, जिसमें से कई कई ईमेल झाँकते रहते हैं जो अनरीड, अनपढ़े रहते है। जिन्हें पढ़ने का कई बार टाइम नहीं मिलता हमें…। शाइस्ता भी वैसा ही एक ईमेल थी, पढ़े जाने को लेकर बेचैन। वह पूरी दुनिया को पढ़वाने के लिए बेचैन है। क्यों सुनाना चाहती है सबकुछ। मेरे भीतर कई सवाल उठ रहे थे।
शाइस्ता ने अपने लंबे बालों को धीरे से समेटा।
जानती हो चैताली… उसने मुझे बहुत चाहा। मेरी खातिर मुसलमान बना। मेरे परिवार को सँभाला। मुझे दो प्यारे प्यारे बच्चे दिए… बस संपत्ति नहीं दी। मैंने राज किया है राज… रानी सरीखी थी मैं… खूब पैंपर किया जाता था मुझे। मेरी खातिर वह मुंबई का साम्राज्य छोड़कर गोवा में शिफ्ट हो गया। मैं गाने की शौकीन थी, पेंटिंग करती थी… हम साथ रहने लगे, और मैंने गाना और पेंटिंग दोनों शुरू किया। दुनियाभर में मेरे सोलो शोज हुए… बाद में मैं आर्ट क्लेक्टर बन गई। आज मेरे पास देश के तमाम नामी कलाकारों की पेंटिग्स है। आई हैव गुड एन रेअर क्लेक्शन्स…।
अपने प्यार के किस्से तो सुनाइए… किसने किसको प्रपोज किया…?
अरे उसने… और किसने…?
अच्छा…
और क्या… मैं अपनी सीट पर बैठी हमेशा गुनगुनाती रहती थी… कागजों पर कुछ भी पेंट कर दिया करती थी… वो सब उन्होंने देख लिया था। मेरे लंबे बाल तब भी थे चैताली… खुला रखती थी… उन्हें बहुत पसंद थे। एक बार बाँध कर आ गई तो टोक दिया। मुझमें बचपना था और उनमें गजब का धैर्य और सूझ… पता नहीं किसने किसको संपन्न किया… लेकिन मुझे नहीं पता कि कब उनके जीवन में दाखिल हुई। यू नो… वी लव इच अदर मैडली… बहुत सारे रंग है इसमें… मेरी पेंटिग्स जितने… मेरे जीवन का कैनवस बहुत बड़ा है।
हाँ… लग रहा है… इसे देखने के लिए एक रात काफी नहीं है…।
अभी तुम कब तक हो गोवा में?
दो दिन और… लेकिन हर शाम कहीं न कहीं बुक है…
चैताली… तुम दिल्ली में रहती हो… सुना है, प्रभावशाली भी हो, कौलेज में पढ़ाती हो… तुम्हारी तो जान-पहचान बहुत होगी ना, बड़े बड़े प्रकाशकों से ? मेरी डील करा दो… मैं अपनी कहानी बेचना चाहती हूँ।
मैं बात करके देखूँगी… पता नहीं प्रकाशको की दिलचस्पी होगी या नहीं…
होगी क्यों नहीं… जिस घराने ने एक जमाने में सरकार की नीतियाँ तक प्रभावित की, उन्हें अपने हक में बदलवाया, जहाँ षड्यंत्रों की अनगिन दास्तानें हैं… जब खुलेंगी तब दुनिया चौंकेगी। मैंने तो तुम्हें कुछ भी नहीं बताया… ये तो सिर्फ हाइलाइट्स हैं… मैं तो सबूत भी दूँगी।
किस बात के…?
ये तुम्हें नहीं… जो लिखेगा, जो खरीदेगा उसे बताऊँगी… मैं अपनी यातना के कुछ साल यूँ ही गुमशुदा नहीं रहने दूँगी चैताली… मैं जवान तो हुई ही नहीं कभी… गरीब होना कितना बड़ा पाप है… मेरे परिवार को पैसों की जरूरत थी, उसे एक जवान देह की, जिसे वह अपनी मगरूर बीवी के सामने पेश कर सके… उसके सामने उस देह को भोग सके… ज्यादा ना पूछो… बस… सब उगलना है मुझे…
शाइस्ता के होंठ थरथरा रहे थे। वह काँप रही थी हौले हौले, हवा के हल्के झोंके से काँपते पत्तों की तरह…। उसने अपने खुले बाल बाँध लिए थे।
आपके बच्चों को ये अच्छा लगेगा क्या… आपका इस तरह दुनिया के सामने…? मैंने आर्द्र स्वर में पूछा।
अब मुझे किसी की परवाह नहीं… बच्चे कबके मेरी दुनिया से बाहर जा चुके… उन्होंने ओबेराय होने से इनकार कर दिया है… लेकिन मैं हूँ ओबेराय… शाइस्ता ओबेराय…
उसकी आँखें हिस्र हो रही थीं। गालों पर लुढ़के आँसू को पोंछा… आएम सौरी… मैं रोना नहीं चाहती… उम्र भर रोई हूँ… अब मैं अकेली, अपने पास हूँ… अब मेरे होने का वक्त है, रोने का नहीं… रोएँगे अब वो लोग… सड़क पर ला दूँगी उन्हें… कैदी नहीं हूँ मैं अब किसी की… मैं आजाद हूँ… आजाद…
आपने पहले मुक्ति के बारे में क्यों नहीं सोचा… उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए मैंने हौले से कहा।
उनके जीतेजी संभव नहीं था… वह कभी नहीं छोड़ते मुझे… और ना मैं… मुझे पर पूरे परिवार का दायित्व था… एक एक कर माँ समेत दोनों भाइयों को सेटल करने का… किया… और मेरी माँ… कैसे बताऊँ… वे उनके साथ थीं…
और मैंने मौत के लिए प्रार्थनाएँ शुरू की… सफल रही… पहली आजादी माँ की मौत ने दी, दूसरी उनकी… आखिरी आजादी मेरे बच्चों ने… आह… अब मैं आजाद हूँ…
वह सुबक रही थी, रात के आखिरी पहर में… शायद सुबह होने को है। मैंने रोने दिया। चुप कराने की कोशिश नहीं की। उम्र भर की तकलीफ आँसुओं में धुलती कहाँ है फिर भी रो लेना, पीड़ा से बाहर निकलने का तात्कालिक समाधान तो है ही।
आप खुद क्यों नहीं लिखतीं… अपनी आत्मकथा…। उसे शांत देखकर मैंने पूछा।
नहीं… मुझे लिखना नहीं आता… मैं बस कहानी बेच सकती हूँ… प्रकाशक लिखवा लें किसी से और मुझे पैसे दे दे… कितने में बिक जाएगा?
डिलाइला की नींद उड़ चुकी थी। झबरू चुपचाप सो चुका था। मैं निरुत्तर थी, पौ फट चुकी थी। हल्का उजाला बाहर फैला था। खिड़की के परदे से छनछन कर हल्का उजाला रूम में आ रहा था, जैसे पुरानी स्मृतियाँ जबरन घुसी चली आती हैं कई यादों की परतों को उधेड़ते हुए।
ओबेराय ग्रुप के स्कूल में कुछ टाइम मैं पढ़ा चुकी थी। उस ग्रुप को तबाह होते देखा था। स्कूल प्रबंधन को दूसरे बड़े ग्रुप ने खरीद लिया था। सुना था, ओबेराय परिवार में जलजला आ गया है… कहीं से अचानक बड़े भाई का एक और परिवार निकल आया है जिसने जायदाद पर दावेदारी जता दी है…।
शाइस्ता… लिसन… ये जो तुम्हारे नए प्रेमी हैं… यू नो, हू इज ही… तुम ठीक से उनके फैमिली बैकग्राउंड के बारे में जानती हो? डिलाइला ने बेचैनी से पूछा।
नौट मच… मुझे जानना भी नहीं है। मेरे लिए इतना काफी है कि ही इज जेनुइनली लव मी, सपोर्ट मी। हाँ, मुझे वक्त कम देता है… बट ही इज वेरी वेरी केयरिंग…
ओह… ओके… बी केयरफुल्ल… फिर उसी तकलीफ में ना पड़ जाना, जहाँ से मुक्ति पाई है।
शाइस्ता उठी, बिना कोई जवाब दिए, हम दोनों के गले लगी और शाम को मिलने का वादा लेकर लौट गई।
मुझ पर शाइस्ता की पीड़ा का गहरा असर था। मैं उनींदी सी बेड पर लुढ़क गई। एक स्त्री को एक रिश्ते से आजाद होने में इतना वक्त क्यों लगा… कितने सवाल और कितने जवाब… कमरे के वायुमंडल में तैर रहे हैं… कितने फैक्टर काम करते हैं एक स्त्री की आजादी में। कितने लोग मिलकर तय करते हैं उसकी कैद। क्या मौत ही आजादी का एकमात्र रास्ता होती है… ये तो क्रूर एप्रोच है, हम क्यों नहीं, साहस जुटाते…
मैं कँपकँपा गई। अनगिन स्त्रियों के चेहरे तैरने लगे। कई आवाजें आने लगीं… नहीं यार, कैसे छोड़ दूँ इस आदमी को, बाहर में सौ कमीने को झेलने से अच्छा है, घर में एक को झेलना… अरे यार… अब वो वैसा ही है… क्या करें, कहाँ जाएँ… सारे रास्ते तो बंद है, अब उम्र भी नहीं रही… उसे तो किसी भी उम्र में लड़कियाँ मिल जाएँगी, हमारा क्या होगा… बच्चों को लेकर कहाँ जाऊँ… बच्चों को उनकी जरूरत है… मैं नौकरी भी तो नहीं करती… ये जीवन तो गया… जाने दो… काट लेंगे जीवन… मैं उसके दायरे में रहकर तलाश रही हूँ अपना लक्ष्य… मेरा नियंत्रण उनके हाथ में… पूछना पड़ेगा जी… नहीं तो घर में तांडव हो जाएगा…
आवाजों का कोलाज, उनका कोलाहल बढ़ता जा रहा था… मैं उठकर बैठ गई। घर के दरवाजे सलाखों में तब्दील हो गए थे। डिलाइला कुछ कह रही थी…
यू नो चैताली, शाइस्ता किसके चक्कर में है। वहाँ भी धोखा खाएगी, मरेगी, ही इज माई फादर इन लौ… वे लोग बास्को में रहते हैं। मैं अपनी सास को बहुत प्यार और सम्मान करती हूँ… वह अक्सर बीमार रहती है… चल फिर नहीं सकतीं। अब समझीं वो बीमार क्यों रहती हैं… ओह…। मेरे पति से तलाक के बावजूद मैं उनके पास आती जाती रहती हूँ… बिकौज शी अंडरस्टैंड माई प्राब्लम एंड हमेशा मेरे पक्ष में लड़ीं। लेकिन मेरे ससुर और पति ने अब तक मुझे अपनी अपनी जायदाद से एक फूटी कौड़ी भी नहीं दिया…
झबरू उधर से भौंकता हुआ आया और डिलाइला के पैरों के पास आकर कूँ कूँ करने लगा। मैं घबराई हुई उठी, कमरे की खिड़की के पास गई। परदा हटाया। समंदर की नमी हवा में थी। नारियल के पेड़ जोर जोर से हिल रहे थे। एक फल टूट कर नीचे धप्प से गिरा। मैंने अपनी दोनों बाजुओं में ताकत जुटाई और भड़ाम से खिड़की के जंग खाए दोनों पल्ले खोल दिए। नींद पूरी तरह जा चुकी थी, ऐसा लगा मानों सदियों के बाद जागी हूँ।
मत खोल… तेज हवा है, सब उधिया जाएगा… रेत भर जाएगी अंदर…
डिलाइला चीखती हुई मेरे पास आई। उसने खिड़की के पल्लों की तरफ हाथ बढ़ाया, मैं उससे लिपट गई। ये सिर्फ झबरू बता सकता है कि हवा का शोर तेज था या दो स्त्रियों का रुदन…।
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