न जाने कब से मैंएक कविता-पंक्ति लेयहाँ-वहाँ भटकी हूँ। कल गर्मी थी :धूप थी, तपन थी।आज बरसात है :ऊपर घिराव और नीचे गिजगिजाहट है।कल ठंड हो जाएगी :भाव, छंद सब जमेंगे। आह ! यह मेरी भटकती पंक्ति कविता की अकेली,टूटी कड़ी-सीअब किसी से न जुड़ पाएगी।