एक कविता पंक्ति
एक कविता पंक्ति

न जाने कब से मैं
एक कविता-पंक्ति ले
यहाँ-वहाँ भटकी हूँ।

कल गर्मी थी :
धूप थी, तपन थी।
आज बरसात है :
ऊपर घिराव और नीचे गिजगिजाहट है।
कल ठंड हो जाएगी :
भाव, छंद सब जमेंगे।

आह ! यह मेरी भटकती पंक्ति कविता की अकेली,
टूटी कड़ी-सी
अब किसी से न जुड़ पाएगी।

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