एक दिन हँसी-हँसी में | केदारनाथ सिंह
एक दिन हँसी-हँसी में | केदारनाथ सिंह
एक दिन
हँसी-हँसी में
उसने पृथ्वी पर खींच दी
एक गोल-सी लकीर
और कहा – ‘यह तुम्हारा घर है’
मैंने कहा –
‘ठीक, अब मैं यहीं रहूँगा’
वर्षा
शीत
और घाम से बचकर
कुछ दिन मैं रहा
उसी घर में
इस बात को बहुत दिन हुए
लेकिन तब से वह घर
मेरे साथ-साथ है
मैंने आनेवाली ठंड के विरुद्ध
उसे एक हल्के रंगीन स्वेटर की तरह
पहन रखा है