एक बीती शाम ओढ़े हैं | यश मालवीय
एक बीती शाम ओढ़े हैं | यश मालवीय

एक बीती शाम ओढ़े हैं | यश मालवीय

एक बीती शाम ओढ़े हैं | यश मालवीय

एक बीती शाम ओढ़े हैं।
देखते हैं किरन फुनगी पर
जा रहा सा घाम ओढ़े हैं।

जा चुकी है भोर की गाड़ी  
क्या पता किस ओर की गाड़ी
और सूना कर गई मन को
शोर, केवल शोर की गाड़ी
एक बीती शाम ओढ़े हैं।
चिट्ठियाँ तहिया रहे पिछली
इक जरा सा काम ओढ़े हैं।

बात अपने बाद की कोई
शक्ल क्या है याद की कोई
एक छाया प्रति जेहन में है
छाँव के अनुवाद की कोई
एक बीती शाम ओढ़े हैं।
हाट में बैठे हुए से हैं
और सिर से दाम ओढ़े हैं। 

नदी के तट पर धुँधलका है
दर्द हल्का, बहुत हल्का है
आँख के कोरों, किनारों से
गीत केवल गीत छलका है
एक बीती शाम ओढ़े हैं।
स्वयं की पहचान खोकर भी
नाम केवल नाम ओढ़े हैं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *