दुविधा विवशता और प्रेम | प्रभात रंजन
दुविधा विवशता और प्रेम | प्रभात रंजन

दुविधा विवशता और प्रेम | प्रभात रंजन

दुविधा विवशता और प्रेम | प्रभात रंजन

आज मैं
श्वेत कमल की
एक कली तोड़कर लाया था

सोचा
तुम्हारी राह में रख दूँ,
तुम स्नेह से उठा लोगी।

फिर सोचा
अगर कुचल दो तो –
फिर मैंने तुम्हारी राह में कमल नहीं रखा।

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मेरा
हृदय ही जानता है,
मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ;
पर मैं
इस पवित्र कमल को
कुचला हुआ नहीं देख सकता।

मेरी
इस विवशता को
क्षमा करना।

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