दुखियारा मन रो ही पड़ता | कृष्ण कुमार
दुखियारा मन रो ही पड़ता | कृष्ण कुमार

दुखियारा मन रो ही पड़ता | कृष्ण कुमार

दुखियारा मन रो ही पड़ता | कृष्ण कुमार

दुखियारा मन रो ही पड़ता,
इसको क्या देकर समझाऊँ ?

जीवन की बदली ने मुझ पर
कुछ ऐसा हिमपात कर दिया
अपने ही साथी साकी ने
विष मधुघट में पुनः भर दिया
बेचारी मधुशाला रोती,
इसको अब कैसे बहलाऊँ ?

आशा को ठग रही निराशा
आज नियति ठुकराई जाती
पनघट पर पहुँची पनिहारिन
गागर फोड़, बहुत इतराती
सूना पनघट क्यों उदास है,
इसका क्या इतिहास बताऊँ ?

जिसका हाथ गहा जीवन में
उसने ही मुझको ठुकराया
भूखा प्यासा जब भटका मैं
मिला न जल, मरुथल ही पाया
प्यासा मृग सिर धुनता क्यों है,
किसको उसकी पीर सुनाऊँ ?

कितने गरजे नभ में बादल    
कितनी जलधारा बरसाई।
पर प्यासे चातक को फिर भी
स्वाती-बूँद कहाँ मिल पाई।
क्यों चातक प्यासा रहता है,
इसका क्या कारण समझाऊँ ?

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