दुख | कृष्णमोहन झा
दुख | कृष्णमोहन झा

दुख | कृष्णमोहन झा

दुख | कृष्णमोहन झा

वो काठ में हो तो घुन होता है 
जो भीत में हो तो दरार। 
मछलियों के लिए चारा है वह 
चिड़ियों के लिए चिड़िमार॥

बूढ़ों का वह मोतियाबिंद है 
बच्चों का वह खंडित ग्रास। 
विधवा का वह सूना घर है 
कोल्हू-बैलों का वह घास॥

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राहों का वह सूना पड़ना 
नदियों का वह रेत-ही-रेत। 
मेरा तो हर रात जगरना 
धरती का वह परती खेत॥

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