दुख | हरे प्रकाश उपाध्याय
दुख | हरे प्रकाश उपाध्याय

दुख | हरे प्रकाश उपाध्याय

दुख | हरे प्रकाश उपाध्याय

जो दोस्त कविता नहीं लिखते
वे कहते हैं इतने अभाव, दुख, बीमारी और
परेशानी में भी
तुम कविता क्यों लिखते हो
जो दोस्त कविता लिखते हैं
वे पूछते हैं कि इतनी सारी समस्याओं के बावजूद
इतने लंबे लंबे समय तक
तुम कविता क्यों नहीं लिखते हो
कविता पूछती है
कि इतनी तो बातें हैं दुनिया में
पर हर बात में तुम दुख ही क्यों लिखते हो
दुख भी पूछते हैं
कि हम तुम्हें इतना परेशान करते हैं कि जीवन में
फिर भी तुम अपनी कविता में भी क्यों रखते हो

पाठक पूछते हैं
जिस कविता के लिखने पर दुख है
नहीं लिखने पर दुख है
जिस कविता में दुख है और स्वयं दुखी है
उस कविता के कवि तुम
कैसे दुनिया का दुख भगाओगे
सच सच बोलो कवि!
इस दुनिया से कैसे पार तुम पाओगे?

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