दृष्टिविरोध | रति सक्सेना
दृष्टिविरोध | रति सक्सेना
मेरी दाहिनी आँख ने
मेरी बाईं आँख के विरोध में
एक बगावत छेड़ दी है
अब उसका लक्ष्य
मुझे दृष्टि देना नहीं,
बल्कि बाईं आँख का
विरोध करना रह गया है
बाईं ने दूरदृष्टि विकसित कर ली है
समय पर खुदे अक्षरों को नकार
दूरी पर टँगे विज्ञापनी बोर्डों को वह
बड़ी आसानी से पढ़ लेती है
लेकिन दाईं की जिद है कि
वह बस आस पास देखेगी
दूर के ढोल सुहावने जो होते हैं
दोनों कि इस जिद ने
एक अजीब सा माहौल पैदा कर दिया है
मेरे करीब हर किसी की
खाल के भीतर छिपी लकीरें
जिन्हें उन्होंने बेहद चालाकी से छिपाया था
दाहिनी आँख साफ साफ देख लेती है
और बाईं है कि अब भी
दूर, बेहद दूर से किसी उस
के आने की आहट
सुनती रहती है
जो कभी था ही नहीं,
मैं दरख्तों को देखती हूँ
तो चिड़िया की आँख दिख जाती है
और समंदर की लहरों की जगह
बस फेन दीख पड़ता है
लेकिन इतना जरूर हो गया है कि
आज कल मैं वह सब देख लेती हूँ
जो कभी देख भी नहीं पाई