दो फूल मिले | राजेंद्र प्रसाद सिंह
दो फूल मिले | राजेंद्र प्रसाद सिंह

दो फूल मिले | राजेंद्र प्रसाद सिंह

दो फूल मिले | राजेंद्र प्रसाद सिंह

दो फूल मिले…,
– हवा के झोंकों से नहीं,
अपने हरे-नीले रस ले
वि क म्पि त…,
दो डालें डालों से उलझीं,
– बवंडर में नहीं,
अपनी गाँठों के उलझे-से
दर्द में डो ल ती;
अभी दो पेड़…
अपनी जड़ों से नहीं उखड़े;
तुम्हें क्या तकलीफ हुई,
ओऽ… बिजली !
निर्मूला, …अपुष्पा, …निश्शाखा,
– यों टूटीं तुम कि दोनों को डाह गईं !!!

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