रूप रेत भरधूप खेत भरफैल गई है चादर तानेतट पर सूरज नभ परहाँफ रहा है आशा कर करलौटेगी उसकी यह आभाभर-भर रेतनदी के तट पर पर कैसे लौटेगीछोड़ उम्र भरअभी-अभी तो आई हैधूप कहाँ भेंटीरेती को जी भर! (‘रेत में आकृतियाँ’ संग्रह से)