अब मशालों पर नहीं विश्वास होता,
जगमगाते दीप प्राणों के जलाओ।
नेह का संबल उन्हें दो
एकता का बल उन्हें दो
और निश्चय से जुड़े कुछ
गीत मेरे पल उन्हें दो
संधि कर लो प्रात की उजली किरण से
किंतु पहले रात की स्याही मिटाओ।
एक हो समता बुला लो
सो रही ममता जगा लो
बाँट लेंगे दर्द को भी
बस यही बीड़ा उठा लो
जब भी अपनों पर नहीं विश्वास होवे,
कुछ परायों को उठा अपना बनाओ।
हाथ में निर्माण का ध्वज
दृष्टि से यह युग बँधा हो
आचरण पावन पुरातन
लक्ष्य भी अपना सधा हो
जब पुरानी विजय का विश्वास खोवे,
बाहुओं के नए कौशल आजमाओ।