दरवाजा | राजा पुनियानी
दरवाजा | राजा पुनियानी

दरवाजा | राजा पुनियानी

दरवाजा | राजा पुनियानी

यूँ तो देखने के लिए
पत्रिकाएँ हैं
वाचाल अखबार है
दिमाग सड़ाने वाला टेलीविजन है

देखने के लिए कम-से-कम
दीवार पर टँगा टकटकी लगाए कैलेंडर है
देखने के लिए
बूढ़ी माँ का खगोल ललाट है
छोटी बेटी की छोटी सी अनंत सूरत है
एक खिड़की आकाश
एक किरणपुंज धूप
और एक आईना चाँद है

वैसे खाली दीवार, गहरे कुएँ और टमाटर के अकेले खेत को
ताक सकती थी वह
चिंताओं से खचाखच भरे मन से बाहर
अकेली कहानीनुमा खिड़की को
खिड़की से बाहर उस बेखबर पेड़ को
पेड़ से आगे शहर को जोड़ती कच्ची सड़क को भी
ताक सकती थी वह

लेकिन जाने क्यों
वह तो ताकती रहती है
दरवाजे को ही

उसी कच्ची सड़क से गुजरते परदेशी ने
कभी उससे कहा होगा
उसी दरवाजे से लौट आएगा वह

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